भारत में लोकसभा की कितनी सीट है
लोकसभा ( Lok-Sabha) अध्यक्ष कौन है ?
भारत में लोकसभा की कितनी सीट है
भारतीय शासन प्रणाली का दूसरा आधार स्तम्भ संघीय विधायिका या संसद है। इसका उपबंध संविधान के भाग-5 के के अध्याय 2 में अनुच्छेद 79 से 122 के अन्तर्गत किया गया है। संविधान के अनुच्छेद-79 में कहा गया है, ‘संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दोनों सदनों से मिलकर बनेगी, जिनके नाम क्रमशः ‘राज्य सभा’ (Council of State) और ‘लोक सभा’ (House of the Pople) होंगे। इस प्रकार भारतीय स संविधान द्वारा ब्रिटिश संविधान की भाँति राज्य के संवैधानिक -(राष्टपति) को संसद का अभिन्न अंग बनाया गया है।* 1935 के भारतीय शासन अधिनियम में केन्द्र में द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका की स्थापना की गयी थी।* इस द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका को संविधान के द्वारा ‘संसद’ (Parliament) का नाम दिया गया है। अतः संसद के निम्न तीन अंग हैं।
- राष्ट्रपति (President) जो कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख है, लेकिन जिसकी कानून निर्माण के क्षेत्र में भी भूमिका है।
- लोक सभा (House of the People) जो प्रथम या निम्न सदन या लोकप्रिय सदन है।*
- राज्यसभा (Council of State) जो द्वितीय या उच्च सदन* है। इस प्रकार राष्ट्रपति, लोकसभा तथा राज्यसभा तीनों का संयुक्त नाम ‘संसद’ (Parliament) है।
लोकसभा( Lok-Sabha) (House of the People )
लोकसभा संसद का प्रथम या निम्न सदन है। इसे लोकप्रिय । सदन भी कहते हैं, क्योंकि इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं। लोकसभा, राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली है, इसीलिए अनेक प्रसंगों में ‘संसद’ का आशय लोकसभा से ही लिया जाता है।

लोकसभा ( Lok-Sabha) का गठन (Composition of Lok-Sabha)
लोकसभा ( Lok-Sabha) के गठन के बारे में प्रावधान संविधान के अनु. 81 में किया गया है। अनु. 81 के तहत मूल संविधान में लोकसभा की सदस्य संख्या 500 निश्चित की गयी थी, लेकिन समय-समय पर इसमें वृद्धि की गयी। 7वें संविधान संशोधन अधि. 1956 द्वारा राज्यों का पुनर्गठन करते हुए लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 525निश्चित की गयी। पुनः 31वें संविधान संशोधन 1974 के द्वारा लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 525 से बढ़ाकर 545 कर दी गयी। परन्तु अब गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 द्वारा निश्चित किया गया है कि लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 5 5 2 हो सकती है। इनमे से अधिकतम 530 सदस्य राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों से व 20 सदस्य संघीय क्षेत्रों से निर्वाचित किये जा सकेंगे एवं राष्ट्रपति आंग्ल भारतीय वर्ग के 2 सदस्यों को मनोनीत कर सकेंगे। ध्यातव्य है कि वर्तमान में लोकसभा की सदस्य संख्या 545 है। इन सदस्यों में 530 सदस्य राज्यों से और 13 सदस्य संघीय क्षेत्रों से निर्वाचित होते हैं तथा 2 सदस्य आंग्ल भारतीय वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रपति द्वारा अनु. 331 के तहत
•sc एवं ST का आरक्षण – अनुच्छेद 330 के तहत . लोकसभा में अनुसूचित जातियों (SC) तथा अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए, राज्यवार जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान किया गया है। वर्तमान में लोकसभा में अनुसूचित जाति के लिए कुल 84 सीट तथा अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीट आरक्षित है। यह प्रावधान आरम्भ में 10 वर्ष के लिए किया गया था, किन्तु पश्चातवर्ती संविधान संशोधन द्वारा उसे 10-10 वर्ष के लिए आगे बढ़ाया जाता रहा है। 95वें संविधान संशोधन (2009) द्वारा अनु. 334 में संशोधन कर लोकसभा में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों के आरक्षण सम्बन्धी प्रावधान को 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।*
- 1.राज्यों को स्थानों का अवंटन : अनुच्छेद 81(2) के . अनुसार लोकसभा में राज्यों को स्थानों का आवंटन उनकी जनसंख्या के आधार पर किया जायेगा, किन्तु प्रतिनिधित्व का अनुपात सभी राज्यों में तथा एक राज्य के सभी निर्वाचन क्षेत्रों में यथा साध्य समरूप रखा जायेगा। इसके लिए राज्यों को स्थान आवंटित करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखा जायेगा। यथा
- प्रत्येक राज्य को लोकसभा में स्थानों का आवंटन ऐसी रीति से किया जाएगा कि स्थानों की संख्या से उस राज्य की जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासाध्य एक ही हो, किन्तु यह उपबन्ध किसी राज्य पर तभी लागू होगा जबकि उस राज्य की जनसंख्या 60 लाख से अधिक हो।
- 2. प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों (Territorial Constituencies) में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो। इस प्रकार संविधान का अनुच्छेद 81(2) यह सुनिश्चित करता है कि पूरे देश में सभी राज्यों के बीच तथा सभी राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के बीच प्रतिनिधित्व में यथा साध्य एकरुपता रखी जायेगी।
संविधान में यह व्यवस्था की गई थी कि प्रत्येक दस वर्ष पश्चात् होने वाली जनगणना के बाद ‘परिसीमन आयोग’ लोकसभा में राज्य व संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधयों की संख्या निश्चित करेगा। संविधान की इस व्यवस्था के अन्तर्गत 1971 की जनगणना के आधार पर लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या 543 निश्चित की गयी। ध्यातव्य है कि इसमें मनोनीत सदस्य शमिल नहीं है। 42वें संविधान संशोधन (1976) द्वारा इस व्यवस्था को समाप्त करते हुए निश्चित किया गया था कि 2000 ई. तक ये निर्वाचन क्षेत्र वही रहेंगे, जो 1971 की जनगणना के आधार पर निर्धरित किये गये हैं। किन्तु 84वें संविधान संशोधन 2001 द्वारा इस व्यवस्था में पुनः परिवर्तन किया गया और लोकसभा के कुल सदस्यों की संख्या तथा लोकसभा में राज्यों को आवंटित स्थानों की संख्या को वर्ष 2026 तक यथावत् रखने का निर्णय लिया गया है।
इस प्रकार अब 2026 तक लोकसभा सदर मनोनीत) ही रहेगी (543 निवाचित + 2 मनानात) हा रहेगी ज्ञातव्य है कि 84वें संविधान संशोधन के वह प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन यह शक्ति दी गई थी कि वह प्रादेशिक निर्वान की जनगणना के आधार पर कर सकती है। तत्पश्चात 87 वें संशोधन 2003 के तहत प्रावधान किया गया कि आधार पर किया जायेगा। इस परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार परआधार पर किया जायेगा
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सदस्यों का निर्वाचन ( Election Of Members )
लोकसभा ( Lok-Sabha) के सदस्यों का चुनाव प्रयत्क्ष रूप से, वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है। पहले 21 वर्ष की आय प्राप्त व्यक्ति को वयस्क समझा जाता था, किन्तु संविधान के 6 1 वें संशोधन 1989 द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गयी है।
- अतः कोई व्यक्ति जो भारत का नागरिक है तथा उसकी आय 18 वर्ष या उससे अधिक है; लोकसभा के निर्वाचन में मतदान कर सकता है, यदि वह चित्तविकृत, अनिवास, किसी अपराध या भ्रष्ट आचरण के आधार पर संसद द्वारा बनायी गयी किसी विधि के अधीन मत देने से अयोग्य न हो (अनुच्छेद 326)
सदस्यों की अर्हताएँ (Qualification of Members)
लोकसभा ( Lok-Sabha) तथा राज्य सभा सदस्यों की अर्हताएँ अनु. 84 में दी गयी है। इसके अनुसार कोई व्यक्ति लोकसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य होगा, यदि वह
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(i) भारत का नागरिक है। .
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(ii) उसकी आयु कम से कम 25 वर्ष है।)
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(ii) निर्वाचन आयोग द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष अनुसूची तीन में विहित प्रारुप में शपथ लिया है, तथा
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(iv) उसके पास ऐसी अन्य योग्यतायें हैं जो संसद द्वारा बनायी गयी विधि के तहत निर्धारित की गयी हैं।
संसद ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम’ 1951 (People’s Representation Act 1951) पास कर संसद सदस्यों के लिए अधोलिखित योग्यताएँ निर्धारित की हैं। यथा :
(a) किसी आरक्षित सीट (SC/ST) से चुनाव लड़ने के लिए – प्रत्यासी को भारत के किसी राज्य या संघराज्य क्षेत्र में उस वर्ग सदस्य होना चाहिए जिसके लिए सीट आरक्षित है, किन्तु प्रावधान असोम के स्वतंत्र जिलों तथा जनजाति क्षेत्रों पर नहीं है। ध्यातव्य है कि आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को सामान पर चुनाव लड़ने के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं है जबकि आराम सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए प्रतिबन्धित हैं।
(b) किसी अन्य स्थान से चुनाव लड़ने के लिए प्रत्यासी को भारत के किसी भी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचन नामावली (मतदाता सूची) में पंजीकृत होना चाहिए
Important Question For All Govt Exam
- संविधान के किस अनु. के तहत् यह कहा गया है कि संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दोनों सदनों (राज्यसभा और लोकसभा) से मिलकर बनेगी? —– अनु. 79 के तहत।
- • भारत में सर्वप्रथम किस अधिनियम द्वारा केन्द्र में द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका की स्थापना की गयी थी?—- – 1935 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा
- • संसद में कौन-कौन शमिल है?—– – राष्ट्रपति, लोकसभा तथा राज्यसभा।
- लोकसभा ( Lok-Sabha) के गठन के सम्बन्ध में प्रावधान किस अनुच्छेदों के तहत किया गया – ——अनु. 81 के तहत
- • संविधान के मूल पाठ में लोक सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या कितनी निश्चित की गयी थी?—— -500
- • किस संविधान संशोधन द्वारा लोक सभा सदस्यों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 कर दिया गया? —-— 31वें संविधान संशोधन द्वारा।
- • लोक सभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती है? —–– 552 •
- वर्तमान में लोकसभा सदस्यों की संख्या कितनी है? —––545 •
- कौन-कौन संविधान संशोधन लोकसभा के सदस्यों की संख्या में वृद्धि करने से सम्बन्धित है? —— 7वाँ तथा 3 1 वाँ
- • अनुच्छेद-331 के अनुसार राष्ट्रपति कितने सदस्यों को लोक सभा में मनोनीत कर सकते हैं? —––2 सदस्यों को।
- • लोक सभा में आंग्ल भारतीय समुदाय से दो सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार किसे है?—– राष्ट्रपति को।
सदस्यों की निरहर्ताएं (Disqualification Of Members )
संविधान के अनुच्छेद 101 तथा 102 में संसद सदस्यो निरहर्ताएं का वर्णन किया गया है। अनु. 102 के अनुसार कोई व्यक्ति लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य चुने जाने के लिए निरहित होगा…
1.यदि वह भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है। (मंत्रियों का पद लाभ का पद नहीं है।)
2.यदि वह विकृतचित्त (Unsound Mind) है या अनुन्मोचित दिवालिया (Undischarged Insolvent) है;
3.यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा रखता हो।
4. यदि वह दल-बदल कानून के तहत् अयोग्य हो। ज्ञातव्य है कि 52वें संविधान संशोधन 1985 द्वारा 10वीं अनुसूची को संविधान में शामिल कर निर्वाचन के पश्चात् दल-बदल करने वाले सदस्यों को अयोग्य घोषित करने के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार संसद के किसी सदन का कोई सदस्य, जो किसी राजनीतिक दल का सदस्य है, अधोलिखित स्थिति में अयोग्य होगा। यथा :
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(a) यदि वह उस राजनीतिक दल की सदस्यता स्वेच्छया छोड़ देता है।
(b) यदि वह उस राजनीतिक दल द्वारा दिये गये निर्देशों के विरुद्ध सदन में मतदान करता है या नहीं करता है।
(c) जब कोई निर्दलीय सदस्य निर्वाचन के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
(d) यदि कोई मनोनीत (Nominated) सदस्य शपथ ग्रहण के 6 माह बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
5. यदि वह संसद द्वारा पारित जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत् अधोलिखित निर्योग्यता को धारित करता है। यथा
-
(a) वह चुनावी अपराध या चुनाव में भ्रष्ट आचरण के लिए दोषसिद्ध किया गया हो ।
(b) वह किसी अपराध के लिए दो वर्ष से अधिक के कारावास से दण्डित किया गया हो।
(c) वह नियत अवधि के भीतर चुनावी खर्च का विवरण देने में असफल रहा हो।
(d) वह किसी ऐसे निगम में लाभ के पद धारण न करता हो जिसमें सरकार की 25% या अधिक कि हिस्सेदारी हो।
(e) उसे भ्रष्टाचार या अनिष्ठा के आधार पर सरकारी सेवा से बर्खास्त न किया गया हो।
6. कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का एक साथ सदस्य नहीं होगा और न ही संसद के किसी सदन और किसी राज्य के विधानमंण्डल का एक साथ सदस्य होगा (अनु. 101 )।
TOP QUESTION FOR ALL GOVT EXAM
- 95वें संविधान संशोधन द्वारा अनु.334 में संशोधन कर अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जन जातियों के लिए लोकसभा में सीटों को आरक्षित रखने सम्बन्धी प्रावधान कब तक के लिए बढ़ा दिया गया है? :—– 2020 तक के लिए
- • लोकसभा में राज्यों के लिए स्थानों का आबंटन किस वर्ष की जनगणना के आधार पर किया गया है? – —1971 की जनगणना के आधार पर
- किस संविधान संशोधन द्वारा यह प्रावधान किया गया है कि 2026 के बाद होने वाली प्रथम जनगणना के आँकड़े प्रकाशित होने तक लोक सभा सदस्यों की संख्या यथावत (545) रहेगी —— 84वें संविधान संशोधन द्वारा
- लोकसभा सदस्यों का चुनाव किस प्रकार होता है? —— – प्रत्यक्ष रूप से वयस्क मताधिकार के आधार पर
- किस संविधान संशोधन द्वारा लोक सभा में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गयी? ——-61वें संविधान संशोधन 1989 द्वारा
- लोकसभा ( Lok-Sabha) का सदस्य निर्वाचित होने के न्यूनतम आयु सीमा क्या है? —–-25 वर्ष
- किन दो राज्यों में लोकसभा की समान रूप से 14-14 सीटें हैं? —— – झारखण्ड एवं असोम में
- • राजस्थान तथा आन्ध्र प्रदेश को लोकसभा में एक समान सीटें प्राप्त हैं। उन्हें । कितनी-कितनी सीटें प्राप्त हैं? —— – 25-25
- किस अनुच्छेद के तहत यह प्रावधान किया गया है कि कोई व्यक्ति जो ‘लाभ का पद धारण करता है या चित्तविकृत है या अनुन्मोचित दिवालिया है या भारत का नागरिक नहीं है वह संसद का सदस्य चुने जाने के लिए आयोग्य हैं? ——– अनु. 102 (1) के तहत्
- कोई व्यक्ति अनु. 102 खण्ड (1) के अधीन उपबन्धित निर्योग्यता से ग्रस्त है या नहीं इसका निर्णय कौन करता है? —–– राष्ट्रपति
- ० संसद सदस्यों की अयोग्यता सम्बन्धी प्रश्नों का विनिश्चय करने से पूर्व राष्ट्रपति किसकी राय लेता है?——-– चुनाव आयोग की (अनु. 103)
- कोई संसद सदस्य ‘दल बदल विरोधी अधिनियम के तहत् अयोग्य है या नहीं इसका निर्णय कौन करता है? ——-यथास्थिति लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति। •
- संसद सदस्यों के लिए योग्यतायें बिहित करने वाला ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम’ कब पारित किया गया था? ——- 1951 में
- • कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए कितने वर्ष की सजा पाने पर संसद का सदस्य चुनें जाने से अयोग्य हो जाता हैं? – दो वर्ष से अधिक
- • किसी व्यक्ति को लोकसभा का सदस्य चुने जाने के लिए कहाँ की मतदाता सूची में उसका नाम होना जरुरी है? – भारत के किसी भी संसदीय क्षेत्र की मतदाता सूची में।
अयोग्यता सम्बन्धी प्रश्नों का विनिश्चय
Artical 103 के अनुसार यदि यह प्रश्न उठता है कि संसद के किसी सदन का कोई सदस्य अनुच्छेद 102 में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो यह प्रश्न राष्ट्रपति को “विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा, किन्तु ऐसे किसी प्रश्न पर विनिश्चय करने के पहले राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग की राय लेगा और उसकी राय के अनुसार कार्य करेगा।
कार्यकाल
संविधान के अनु. 83(2) के अनुसार लोकसभा ( Lok-Sabha) का कार्यकाल प्रथम बैठक की तारीख से 5 वर्ष होता है।* 5 वर्ष की अवधि समाप्त होते ही लोकसभा ( Lok-Sabha) भंग हो जाती है, परन्तु इस अवधि के पूर्व भी प्रधानमंत्री के परामर्श पर वह राष्ट्रपति द्वारा भंग की जा सकती है। आपातकाल की घोषणा लागू होने पर संसद विधि द्वास लोकसभा ( Lok-Sabha) के कार्यकाल में वृद्धि कर सकती है जो एक बार में एक वर्ष से अधिक न होगी। उल्लेखनीय है कि दूसरी आपात उद्घोषणा के कारण पाँचवीं लोकसभा ( Lok-Sabha) का कार्यकाल दो बार एक-एक वर्ष के लिए (18 मार्च 1976 से 18 मार्च 1977 एवं 18 मार्च 1977 से 18 मार्च 1978 तक) बढ़ाया गया था। किन्तु इस प्रकार बढ़ायी गयी अवधि किसी भी दशा में संकटकाल की घोषणा की समाप्ति के पश्चात 6 माह से अधिक प्रवृत्त न रहेगी।*
- ध्यातव्य है कि 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा लोकसभा का कार्यकाल 6 वर्ष कर दिया गया था, जिसे 44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा पुनः 5 वर्ष कर दिया गया।
सदस्यों द्वारा शपथ ग्रहण
अनुच्छेद 99 संसद सदस्यों के शपथ ग्रहण के बारे में है। इसके अनुसार संसद का प्रत्येक सदस्य सदन में अपना स्थान ग्रहण करने के पूर्व राष्ट्रपति या उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष तृतीय अनुसूची में विहित प्रारुप में शपथ ग्रहण करेगा। शपथ ग्रहण न करने पर निर्वाचित व्यक्ति सदन में बैठने का अधिकारी नहीं होता है और न ही वह सदन का सदस्य होता है।
- अनुच्छेद 104 के तहत संसद में अनधिकृत रूप से बैठने या मतदान करने वाले के लिए दण्ड का प्रावधान किया गया है
वेतन एवं भत्ते
संसद के प्रत्येक सदस्य को संसद द्वारा निर्धारित वेतन एवं भत्ता दिया जाता है। वर्तमान में उन्हें 50 हजार रु० मासिक वेतन, 45 हजार रु० मासिक निर्वाचन क्षेत्र भत्ता तथा 45 हजार रु० मासिक कार्यालय भत्ता दिया जाता है। अधिवेशन आदि बैठकों के लिए 2000 प्रति दिन का दैनिक भत्ता दिया जाता है।
अधिवेशन व गणपूर्ति (Quorum)
राष्टपति वर्ष में कम-से-कम दो बार लोकसभा का अधिवेशन आहत करेगा।* लोकसभा Lok-Sabha) के एक सत्र की अन्तिम बैठक ,आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच – माह से अधिक अन्तर न होगा। अधिवेशन गठित करने के लिए +-गणपति (Quorum) सदन की कुल सदस्य संख्या का 1/10 भाग व होना आवश्यक है। इस प्रकार वर्तमान में लोकसभा में गणपति के | लिए आवश्यक सदस्यों की संख्या 55 है। यदि इतने सदस्य न उपस्थित न हों तो अध्यक्ष अधिवेशन को तब-तक के लिए निलम्बित 5 कर देगा जब तक कि गणपूर्ति न हो जाय।
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष (The Speaker and Deputy Speaker)
संविधान द्वारा संसद के दोनों सदनों हेतु पीठासीन अधिकारियों का प्रावधान किया गया है। लोकसभा( Lok-Sabha) में अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा ( Lok-Sabha) में सभापति एवं उपसभापति पीठासीन अधिकारी होते हैं। सभापति एवं उपसभापति सम्बन्धी उपबन्ध अनुच्छेद 89, 90, – 91 एवं 92 के तहत दिया गया है जबकि अनुच्छेद 93-97 अध्यक्ष – एवं उपाध्यक्ष के बारे में है। संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा अपनी प्रथम बैठक में अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष (Speaker) और एक उपाध्यक्ष (Duputy Speaker) का चुनाव करती है और जब भी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त (Vacant) होता है तो वह पुनः किसी अन्य सदस्य को उस पद के लिए चुनती है।
जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष लोकसभा का सदस्य नहीं रहता है तब उसका पद रिक्त हा जाता है। अध्यक्ष-उपाध्यक्ष दोनों का कार्यकाल 5 वर्ष का हाता है। इसके पूर्व भी वे स्वेच्छा से त्याग-पत्र दे सकते हैं। अध्यक्ष अपना त्याग-पत्र उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष अपना त्याग-पत्र अध्यक्ष को देता है। इसके अतिरिक्त उन्हें लोकसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकता है।
परन्तु ऐसा संकल्प तब-तक प्रस्तावित नहीं किया। सकता, जब-तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आना सूचना कम से कम 14 दिन पूर्व अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को । भी हटाना हो).न दे दी गई हो। अनुच्छेद 96(1) के – यथास्थिति जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने उसके पद से हटाने का संकल्प लोकसभा में विचाराधीन हो तब वह उसकी अध्यक्षता नहीं करेगा। किन्तु उसे लोकसभा ( Lok-Sabha) में बोलने, उसकी कार्यवाही में भाग लेने तथा प्रथमतः मतदान करने का अधिकार होता है लेकिन मत बराबर होने की स्थिति में ‘निर्णायक मत’ देने का अधिकार नहीं होता है। Narena अनच्छेद 95 के अनुसार जब. अध्यक्ष का पद रिक्त हो या अध्यक्ष अनुपस्थित हो तब उपाध्यक्ष लोकसभा ( Lok-Sabha) की अध्यक्षता करता है किन्तु अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष दोनों का पद रिक्त होने पर लोकसभा( Lok-Sabha) का ऐसा सदस्य अध्यक्ष के कर्त्तव्यों का पालन करता है जिसको राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करता है जबकि अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष दोनों की अनुपस्थिति की स्थिति में स्वयं लोकसभा ( Lok-Sabha) द्वारा अवधारित व्यक्ति अध्यक्ष के – दायित्वों का निर्वहन करता है।
- अनुच्छेद 94 के अनुसार जब कभी लोकसभा का विघटन किया जाता है तो विघटन के पश्चात् होने वाले लोकसभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद पर बना रहेगा
- लोकसभा ( Lok-Sabha) के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को संसद द्वारा निर्धारित वेतन और भत्ते प्राप्त होते हैं। इन दोनों पदाधिकारियों को निःशुल्क आवास तथा केन्द्रीय मंत्रियों को मिलने वाली अन्य सुविधाएं – भी प्राप्त होती हैं।
- ध्यातव्य है कि लोकसभा ( Lok-Sabha) अध्यक्ष लोकसभा का निर्वाचित सदस्य होता है और वह लोकसभा ( Lok-Sabha) के सदस्य के रूप में शपथ ग्रहण करता है, उसे लोकसभा ( Lok-Sabha) के अध्यक्ष रूप में अलग से कोई शपथ नहीं दिलायी जाती है। अतः लोकसभा के अध्यक्ष को कोई शपथ ग्रहण नहीं कराता है
अध्यक्ष के अधिकार तथा कार्य (Power and Function of the Speaker)
लोकसभा ( Lok-Sabha) के अध्यक्ष के अधिकार तथा कार्य निम्नलिखित हैं– •
- वह लोकसभा ( Lok-Sabha) की बैठकों की अध्यक्षता करता है और सदन की कार्यवाही का संचालन करता है।
- • वह सदन में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है। यदि कोई सदस्य उसकी आज्ञा न माने व सदन की कार्यवाही में _ निरन्तर बाधा डाले, तो वह उसकी सदस्यता को निलम्बित भी कर सकता है।
- वह सदन के नेता के परामर्श से सदन की कार्यवाही का क्रम निश्चित करता है। । वह दल-बदल के आधार पर अयोग्यता सम्बन्धी प्रश्नों का निर्णय करता है।
- राष्ट्रपति के उद्घाटन-भाषण के सम्बन्ध में किये जाने वाले वाद-विवादों आदि का समय निश्चित करता है।
- वह भारतीय संसदीय समूह के पदेन सभापति के रूप में कार्य करता है।
- सदन में अव्यवस्था फैलने पर वह सदन की कार्यवाही स्थगित कर सकता है।
- लोकसभा ( Lok-Sabha) और राज्य सभा के संयुक्त अधिवेशन में वही अध्यक्षता करता है। कोई विधेयक धन-विधेयक (Money Bill) है अथवा नहीं, इस बात का निर्णय अध्यक्ष ही करता है।
- वह प्रथमतः मतदान में भाग नहीं लेता है किन्तु किसी प्रश्न पर सदन में पक्ष-विपक्ष के बराबर मत आने की स्थिति में वह ‘निर्णायक मत’ (Casting Vote) देता है, अनु. 100(1)
- वह विभिन्न विधेयकों, प्रस्तावों आदि पर मतदान कराकर परिणाम घोषित करता है। प्रश्नों को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने का कार्य वही करता है और ‘कामरोको प्रस्ताव’ भी उसकी अनुमति से ही पेश हो सकता है। प्रक्रिया सम्बन्धी सभी विवादों पर उसका निर्णय अन्तिम होता है।
- . वह लोकसभा ( Lok-Sabha) की सभी संसदीय समितियों के सभापति की नियुक्ति करता है और उनके कार्यों का पर्यवेक्षण करता है। वह स्वयं भी कार्य मंत्रणा समिति, नियम समिति व सामान्य प्रयोजन समिति का अध्यक्ष होता है।
- सदन में कोई भी सदस्य उसकी आज्ञा से ही भाषण कर सकता है
NOTE FOR ALLL GOVT EXAM
- अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष पद का उद्भव भारत सरकार अधिनियम 1919 के तहत 1921 में सर्वप्रथम हुआ था। इसके पूर्व गवर्नर जनरल ही केन्द्रीय विधान परिषद का पीठासीन अधिकारी होता था।
- 1921 में गवर्नर जनरल द्वारा पहली बार अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के रूप में क्रमशः फ्रेड्रिंक ह्वाइट एवं सच्चिदानन्द सिन्हा की नियुक्ति की गई थी
- 1925 में विट्ठल भाई पटेल को केन्द्रीय विधान परिषद का प्रथम निर्वाचित अध्यक्ष चुना गया जो पहले भारतीय अध्यक्ष थे।
- मीरा कमार भारत की प्रथम महिला लोकसभा अध्यक्ष थी।
- वर्तमान लोकसभा ( Lok-Sabha) अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन भारत का दूसरा । महिला लोकसभा अध्यक्ष हैं।
- सर्वप्रथम लोकसभा अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर के विरुद्ध उन्ह पदच्या करने के लिए प्रस्ताव लोकसभा में लाया गया था, किन्तु वह पारित नहीं हो सका था।
- नीलम संजीव रेड्डी ऐसे लोकसभा ( Lok-Sabha) अध्यक्ष हैं जो बाद में भारत के | राष्ट्रपति चुने गये।
- एम. ए. एस. आयंगर तथा हुकुम सिंह ऐसे लोकसभा ( Lok-Sabha) अध्यक्ष थे जो लोकसभा के उपाध्यक्ष भी रह चुके थे।
- मीरा कुमार पदक्रम के अनुसार 20वीं तथा व्यक्ति क्रम के अनुसार 15वीं लोकसभा ( Lok-Sabha) अध्यक्ष थीं, क्योंकि एम.ए.एस. आयंगर, नीलम संजीव रेड्डी, गुरुदयाल ढिल्लो, बलराम जाखड़ तथा जी.एम.सी. बालयोगी दो-दो बार लोकसभा ( Lok-Sabha) अध्यक्ष रहे थे।
लोकसभा की शक्तियाँ और कार्य (Powers and Functions of Lok Sabha)
लोकसभा ( Lok-Sabha) संसद का निम्न सदन है किन्तु वह राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली है। यह जनता का वास्तविक प्रतिनिधित्व करने वाला सदन है। इसकी शक्तियों एवं कार्यों का उल्लेख निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है।
विधायी शक्तियां
विधायी शक्तियां प्रत्येक विधेयक को विधि बनाने के पूर्व लोकसभा ( Lok-Sabha) की स्वीकृति आवश्यक है। राज्यसभा में यदि कोई विधेयक प्रस्तुत किया गया है तो उस विधेयक को भी लोकसभा ( Lok-Sabha) द्वारा पारित किया जाना आवश्यक है। यदि किसी साधारण विधेयक के सम्बन्ध में संसद के दोनों सदनों में कोई मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो गत्यावरोध दूर करने के लिए राष्ट्रपति अनु. 108 के तहत दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन आहूत करता है। इस बैठक में साधारण बहुमत द्वारा विधेयक को पारित किया जाता है। राज्यसभा की तुलना में लोकसभा ( Lok-Sabha) की लगभग दुगुनी सदस्य संख्या के कारण अन्तिम निर्णय लोकसभा ( Lok-Sabha) द्वारा ही होता है। इस प्रकार कानून निर्माण के क्षेत्र में लोकसभा ( Lok-Sabha) ही अधिक शक्तिशाली है।
कार्यपालिका पर नियन्त्रण की शक्ति
भारतीय संविधान के द्वारा संसदीय शासन व्यवस्था की गयी हैं। व्यवहारतः संसदीय शासन-प्रणाली में क मंत्रिपरिषद) को व्यवस्थापिका (मुख्यतः लोकसभा Lok-Sabha) के सिन व्यवस्था की स्थापना प्रणाली में कार्यपालिका सभा) के नियंत्रण में कार्य करना पड़ता है। भारत में लोकसभा ( Lok-Sabha) का कार्यपालिका अर्थात् मंत्रिपरिषद पर पूर्ण नियंत्रण है। केन्द्रीय मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से उसके प्रति उत्तरदायी होती है [अनु. 75(3)]। मंत्रिपरिषद केवल उसी समय तक अपने पद पर बनी रहती है जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो।* यदि लोकसभा मंत्रिपरिषद के विरुद्ध ‘अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर देती है तो मंत्रिपरिषद को तुरन्त त्यागपत्र देना पड़ता है। यदि लोकसभा सरकार द्वारा पेश किये गये बजट को नामंजूर कर दे या राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए उसके धन्यवाद प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दे तो भी मन्त्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है। इसके अतिरिक्त लोकसभा अनेक प्रकार से कार्यपालिका पर नियन्त्रण रख सकती है। यथा- लोकसभा के सदस्य मंत्रियों से सरकारी नीति के सम्बन्ध में व सरकार के कार्यों के सम्बन्ध में प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं, ‘काम रोको प्रस्ताव’ व निन्दा का प्रस्ताव’ प्रस्तुत कर सकते हैं, उसकी नीति की आलोचना कर सकते हैं तथा सरकारी विधेयक या बजट को अस्वीकार करके, मंत्रियों के वेतन में कटौती का प्रस्ताव स्वीकार करके अथवा किसी सरकारी विधेयक में कोई संशोधन करके, जिससे सरकार सहमत न हो, अपना विरोध प्रदर्शित कर सकती है। कार्यपालिका पर नियन्त्रण की शक्ति के अन्तर्गत ही लोकसभा संघीय लोकसेवा आयोग, भारत के नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग, भाषा आयोग व अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग की रिपोर्ट पर विचार करती है
वित्तीय शक्ति
भारतीय संविधान द्वारा लोकसभा को वित्तीय शक्तियों की दृष्टि से प्रमुखता प्रदान की गयी है। इस सम्बन्ध में राज्यसभा की स्थिति – बहुत गौण है। अनुच्छेद 109 के अनुसार धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जा सकते हैं, राज्यसभा में नहीं।* लोकसभा से पारित होने के बाद धन विधेयक राज्यसभा में भेजा जाता है और राज्यसभा के लिए यह आवश्यक है कि उसे धन विधेयक की प्राप्ति की तिथि से 14 दिन के अन्दर-अन्दर विधेयक लोकसभा को लौटा दे।* राज्यसभा विधेयक में संशोधन के लिए सुझाव दे सकती है, लेकिन उन्हें स्वीकार करना या न करना लोकसभा की इच्छा पर निर्भर करता है। संविधान यह भी व्यवस्था करता है कि यदि धन विधेयक पारित होने के बाद 14 दिन के अन्दर राज्यसभा सिफारिशों सहित या सिफारिशों के बिना धन विधेयक लोकसभा को न लौटाये, तो निश्चित तिथि के बाद वह दोनों सदनों से पारित मान लिया जायेगा। वार्षिक बजट और अनुदान सम्बन्धी मांगे भी * लोकसभा के समक्ष ही रखी जाती हैं और इस प्रकार के समस्त व्यय की स्वीकृति देने का अधिकार भी लोकसभा को ही प्राप्त है।
संविधान संशोधन सम्बन्धी शक्ति
लोकसभा को राज्य सभा के साथ मिलकर संविधान के किसी उपबन्ध का परिवर्द्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधन का अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 368 के तहत यह अधिकार दोनों सदनो को समान रूप से दिया गया है। अतः संविधान संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। इस विधेयक को प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित मत देने वाले सदस्यों के कम से कम तिहाई बहुमत द्वारा पारित किय द्वारा पारित किया जाना आवश्यक होता है। ध्यातव्य संशोधन विधेयक के सम्बन्ध में यदि संसद के दोनों सदनों असहमति है तो विधेयक अस्वीकार समझा जायेगा। क्योंकि संशोधन विधेयक पर विचार करने के लिए-ससद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत करने का कोई प्रावधान नहीं है।
निर्वाचक मण्डल के रूप में कार्य
लोकसभा निर्वाचक मण्डल के रूप में भी कार्य करती और अनच्छेद 54 के अनुसार लोकसभा के सदस्य, राज्यसभा तथा राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के साथ मिलकर राष्ट्रपति को निर्वाचित करते हैं। अनुच्छेद-66 के अनुसार लोकसभा और राज्यसभा के सभी सदस्य मिलकर उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। लोकसभा अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को भी निर्वाचित करती
भारत में लोकसभा की कितनी सीट है
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