रूसी क्रांति-Russian Revolution-Causes of the Russian Revolution

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रूस में  क्रांतिकारी आंदोलन 

युद्ध के दौरान रूस में क्रांति हुई, जो एक महान ऐतिहासिक घटना थी। 19वीं सदी में अनेक सुधारवादी तथा क्रांतिकारी आंदोलन हुए जिनमें रूसी किसानों के असंतोष की अभिव्यक्ति हुई। 1861 ई. में कृषि दासता के उन्मूलन के बावजूद वहाँ के किसानों का जीवन दयनीय था।

रूसी सामंतवर्ग तथा चर्च बड़ी-बड़ी जागीरों के मालिक थे और दूसरी ओर करोड़ों किसान ऐसे थे जिनके पास अपनी कोई संपत्ति नहीं थी। औद्योगिक श्रमिकों का नया वर्ग गरीबी और अभाव का जीवन व्यतीत कर रहा था। मध्य वर्ग तथा बुद्धिजीवी लोग निरंकुश राज्य-व्यवस्था का विरोध करने में एकजुट हो गए थे और वे भी किसानों की तरह क्रांतिकारी आंदोलनों की ओर आकर्षित हुए।

19वीं सदी के अंतिम चरण से रूस में समाजवादी (सोशलिस्ट) विचार फैलने लगे थे और उस दौरान कई समाजवादी समूहों का गठन किया गया था। 1898 ई. में विभिन्न समाजवादी गुटों ने मिलकर रूसी समाजवादी लोकतांत्रिक श्रमिक दल (सोशल डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी) का गठन किया। लेनिन के नाम से विख्यात ब्लादिमीर इलिच उलियानोव इस दल के वामपक्ष नेता थे। अल्पमत दल को मेनशेविक कहा जाता था।

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1903 ई. में इस गुट ने दल में बहुमत प्राप्त कर लिया। यह बहुमत दल बोल्शेविक नाम से प्रसिद्ध हुआ। बोल्शेविकों ने समाजवाद की स्थापना को अपना लक्ष्य बताते हुए यह संकल्प लिया, कि उनका तात्कालिक कार्य निरंकुश जारशाही को समाप्त करके एक गणतंत्र की स्थापना करना तथा रूसी साम्राज्य के गैर-रूसी राष्ट्रीयता वाले लोगों के शोषण को समाप्त करके उन्हें आत्मनिर्णय का अधिकार दिलाना है। इसके अतिरिक्त आठ घंटे का कार्य-दिवस आरंभ करना तथा भूमि के वितरण से सम्बंधित असमानता को समाप्त करना और किसानों के सामंती शोषण का उन्मूलन करना भी इस संकल्प के अंग थे।

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1905 ई. में रूस में एक क्रांति हुई जिसके फलस्वरूप जॉर्ज निकोलस द्वितीय को ड्यूमा नामक संसद की स्थापना करने तथा लोगों को कुछ अन्य लोकतांत्रिक अधिकार देने पर विवश होना पड़ा। इस दौर में श्रमिकों के एक नए प्रकार के संगठन का जन्म हुआ था, जिसे सोवियत कहा जाता था। यह हड़तालों का संचालन करने के लिए स्थापित श्रमिकों के प्रतिनिधियों की संस्था थी। आगे चलकर किसानों की सोवियतों का गठन किया गया। कुछ समय पश्चात् सैनिकों की सोवियतें बनाई गईं। धीरे-धीरे पूरे देश में सोवियतें स्थापित हो गईं। बाद में इन सोवियतों ने रूसी क्रांति में एक निर्णायक भूमिका निभाई।

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फरवरी क्रांति

युद्ध ने रूस की तत्कालीन व्यवस्था को दिवालियापन साबित कर दिया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप निरंकुश तंत्र का संकट और भी घनीभूत हो गया और अंत में यही उसके पतन का कारण बना। रूस ने 1.2 करोड़ सैनिकों को लामबंद किया था, लेकिन उन्हें न तो ठीक से साज-सामान मिलता था और न रसद-पानी। रूस की कमजोर अर्थव्यवस्था को युद्ध ने और भी जर्जर बना दिया था। देश के सामने भुखमरी की भयावहता उपस्थित हो गई थी। रोटी की कमी हो जाने के कारण उसके खरीदारों की लंबी-लंबी कतारें लगने लगी थीं।

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1917 ई. के आरंभ से एक के बाद एक कई हड़ताले प्रारम्भ हुईं, जिन्होंने अंत में आम हड़ताल का रूप ले लिया। युद्ध और जारशाही समाप्त करने की माँग जोर पकड़ती गई। 12 मार्च को सेना के कई रेजिमेंट हड़ताल में शामिल हो गये। उन्होंने राजनीतिक बंदियों को आजाद कर दिया और जारशाही जनरलों और मंत्रियों को गिरफ्तार कर लिया। पेट्रोग्राड विद्रोही श्रमिकों तथा सैनिकों के हाथों में आ चुका था। 12 मार्च, 1917 की इन घटनाओं के साथ फरवरी क्रांति संपन्न हुई। इसे यह संज्ञा इसलिए दी गई, क्योंकि रूस के पुराने पंचाँग के अनुसार वह दिन 27 फरवरी था।

उस समय जार राजधानी से बाहर था। उसने विद्रोहियों को दबाने और ड्रयूमा (संसद) को भंग कर देने का आदेश जारी किया लेकिन ड्रयूमा ने सत्ता अपने हाथों में ले लेने का निर्णय किया और 15 मार्च को उसने एक अस्थायी सरकार की घोषणा कर दी। उसी दिन जार को गद्दी छोड़ने पर विवश किया गया और उसके निरंकुश शासन का अंत हो गया और रूस को कुछ महीने बाद सिंतबर में गणतंत्र घोषित कर दिया गया।

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अक्टूबर क्रांति

अक्टूबर में बोल्शेविकों ने विद्रोह की योजनाबद्ध तैयारी की। 25 अक्टूबर, 1917 को श्रमिकों तथा सैनिकों के प्रतिनिधियों की सोवियतों की अखिल रूसी कांग्रेस की बैठक बुलाई गई। पेट्रोग्राड में 25 अक्टूबर की सुबह विद्रोह आरंभ हुआ और कुछ घंटों में नगर के लगभग सभी महत्वपूर्ण स्थानों पर बोल्शेविकों के नेतृत्व में क्रांतिकारी सैनिक तथा श्रमिकों के अधीन हो गए।

रात के 10 बजकर 40 मिनट पर श्रमिकों तथा सैनिकों के प्रतिनिधियों की सोवियतों की अखिल रूसी कांग्रेस की बैठक आरंभ हुई। लगभग उसी समय अस्थायी सरकार के मुख्यालय विंटर पैलेस पर आक्रमण प्रारम्भ हुआ। अगले दिन (पुराने पंचांग के अनुसार 26 अक्टूबर को) रात के 1 बजकर 50 मिनट पर विंटर पैलेस पर कब्जा कर लिया गया और अस्थायी सरकार के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस सरकार का मुखिया करेन्सकी बच निकला।

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रात के 9 बजे सोवियतों की कांग्रेस की दूसरी बैठक आरंभ हुई। जिस नई सरकार ने सत्ता संभाली उसका पहला कार्य शांति की घोषणा को स्वीकृति देना था। इसमें सरकार का यह संकल्प व्यक्त किया गया कि वह शांति के लिए बातचीत प्रारम्भ करेगी, ऐसी शांति जिसमें किसी देश और उसके किसी भाग पर अन्य देश का अधिकार नहीं होगा और किसी देश को हर्जाना नहीं देना पड़ेगा।

लेनिन के नेतृत्व वाली इस क्रांतिकारी सरकार ने जो दूसरा कदम उठाया वह भूमि संबंधी घोषणा को स्वीकृति देना था। इस घोषणा ने निजी भू-संपत्ति को समाप्त कर दिया और कहा कि भूमि संपूर्ण राष्ट्र की संपत्ति है। 

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इसके पश्चात् नई सरकार ने जारशाही द्वारा चीन, ईरान और अफगानिस्तान पर थोपी गई असमान संधियों का एकतरफा त्याग कर दिया गया। सभी राष्ट्रों के समानता तथा आत्म-निर्णय के अधिकार की घोषणा की गई। फरवरी, 1918 तक नई सरकार ने पूरे देश में अपनी सत्ता प्रतिष्ठित कर ली। लेकिन इसके पश्चात् रूस गृह-युद्ध से ग्रसित हो गया। पुरानी व्यवस्था के प्रति वफादर सैनिक जो गोरे रूसी कहलाते थे, क्रांति को मिटाने के लिए संगठित हो गए थे।

ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान तथा अन्य मित्र शक्तियाँ भी रूस को फिर से लड़ाई में घसीटने, उसके संशोधनों का युद्ध के लिए उपयोग करने तथा क्रांति विरोधी शक्तियों को सहायता देने के लिए उसके मामलों में हस्तक्षेप करने लगीं। अन्ततः गृह-युद्ध तथा विदेशी सैनिक हस्तक्षेप 1920 ई. में समाप्त हुआ।

जारशाही प्रथम विश्व युद्ध के दौरान समाप्त करने वाला पहला राजवंश था युद्ध समाप्त होने के पूर्व दो और राजवंशों का पतन हुआ। इनमें से एक जर्मन राजवंश और दूसरा, ऑस्ट्रिया-हंगरी का राजवंश था। एक चौथे शासक वंश उस्मानिया शाही घराना का पतन युद्ध के पश्चात् हुआ।

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वैश्विक प्रभाव

विश्व में साम्यवादी विचारों का प्रसार हुआ तथा अनेक देशों में साम्यवादी सरकारें स्थापित हुई। श्रमिकों के प्रति एक नवीन दृष्टिकोण का उदय हुआ। श्रम की महत्ता और उसके पारिश्रमिक के प्रति न्यायपूर्ण दृष्टिकोण का प्रयास किया गया। अनेक देशों में श्रमिक संगठनों की स्थापना, आंदोलनों का विकास एवं आई.एल.ओ. की स्थापना की गई। अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में आर्थिक नियोजन की प्रणाली को स्वीकृत किया गया। विश्व दो विचारधाराओं के गुट में विभाजित हुआ जो शीतयुद्ध के प्रादुर्भाव का कारण बना।

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