सातवाहन युग

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 इतिहास

दक्कन और मध्य भाग में मौर्यों के उत्तराधिकारी सातवाहन हुए। पुराणों में सातवाहनों को आन्ध्र कहा गया है। सातवाहन अभिलेखों में आन्ध्र नाम नहीं मिलता है। पुराणों के अनुसार, आन्ध्रों ने लगभग 300 वर्षों तक शासन किया। यही समय सातवाहनों का शासनकाल माना जाता है।

सातवाहनों के सबसे पुराने अभिलेख ईसा पूर्व पहली सदी के हैं। उन्होंने कण्वों को पराजित कर मध्य भारत के कुछ भागों में अपनी सत्ता को स्थापित किया था।

सिमुक (60-37 ई.पू.)

 सातवाहनों की शक्ति को स्थापित करने वाला प्रथम शासक  सिमुक था। पुराणों के अनुसार, सिमुक ने अंतिम रूप से शुंग व कण्व सत्ता को समाप्त किया। परन्तु, इस बात के प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं कि, सिमुक ने मगध पर आक्रमण किया, जहाँ कण्व वंश का सुशर्मन शासन कर रहा था।

कृष्ण ( 37-27 ई. पू.)

सिमुक के बाद उसका भाई कृष्ण (कान्हा) शासक बना। पुराणों के अनुसार, उसने 18 वर्षों (37-27 ई. पू.) तक शासन किया  और नासिक तक सातवाहन शक्ति का विस्तार किया। नासिक शिलालेख में इसका नाम मिलता है। इसके शासनकाल में राज्य के किसी उच्च पदाधिकारी ने नासिक में एक गुफा का निर्माण करवाया। 

शातकर्णी प्रथम (27-17 ई. पू.)

सातवाहनों का अगला शासक शातकर्णी प्रथम था। वह सिमुक का पुत्र या भतीजा (कृष्ण का पुत्र) था। उसके नाम का उल्लेख सातवाहन अभिलेखों एवं पेरिप्लस ऑफ दि एरिथ्रियन सी में मिलता है।

यह शातकर्णी की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक था। 10 वर्षों के शासनकाल में वह दक्षिणापथ का सबसे शक्तिशाली राजा बन बैठा। अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए उसने अंगीय या अमिय-वंश की राजकुमारी नायनिका से विवाह कर लिया। उसकी रानी नायनिका के अभिलेख से शातकर्णी के कार्यों प्रकाश डाला . गया है। शातकर्णी प्रथम ने मालव शैली की गोल मुद्राएँ तथा अपनी पत्नी के नाम पर रजत मुद्राओं का प्रचलन किया था।

हाल (20-24 ई. पू.)

हाल इस वंश का सत्रहवाँ राजा था। इसने प्राकृत भाषा में गाथासप्तशती नामक पुस्तक की रचना की। इसमें उसकी प्रेमगाथाओं का वर्णन है। इसके काल में गुणाढ्य ने वृहत्कथा कोश नामक ग्रंथ की रचना की थी। कातंत्र के लेखक शर्ववर्मन उसके दरबार में रहते थे।

गौतमीपुत्र शातकर्णी (106-130 ई.)

इसके समय में इसकी माता बलश्री का नासिक अभिलेख प्राप्त हुआ है। नासिक अभिलेख में इसे एकमात्र ब्राह्मण एवं अद्वितीय ब्राह्मण कहा गया है। गौतमीपुत्र शातकर्णी का साम्राज्य उत्तर में मालवा से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक फैला हुआ था। गौतमीपुत्र शातकर्णी के उत्तराधिकारी वशिष्ठीपुत्र पुलुमावी (130-154 ई.) ने अपनी राजधानी आन्ध्र प्रदेश के औरंगाबाद जिले में गोदावरी नदी के किनारे पैठन या प्रतिष्ठान में स्थापित की थी।

सौराष्ट्र (काठियावाड़) के शक शासक रुद्रदामन प्रथम (130-150 ई.) ने सातवाहनों को दो बार पराजित किया, परन्तु वैवाहिक सम्बंध के कारण उन्हें नष्ट नहीं किया। उसने बौद्ध संघ को अजकालीकय तथा कार्ले के भिक्षुसंघ को करजक नामक ग्राम दान में दिये थे। गौतमी पुत्र शातकर्णी ने वेणकटक स्वामी की उपाधि धारण की तथा वेणकटक नगर (नासिक जिला) की स्थापना की।

वशिष्ठीपुत्र पुलुमावी ( 130-154 ई.)

पुराणों में उसका नाम पुलोमा शातकर्णी और टॉल्मी के विवरण में सिरो-पोलिमेओस के रूप में मिलता है। मुद्राओं व अभिलेखों ( नासिक, कार्ले , अमरावती) में भी उसका नाम मिलता है। संभवतः उसी ने नवनगा की स्थापना की थी। उसने भी महाराज व दक्षिणापथेश्वर की उपाधि धारण की, जिसका उल्लेख अमरावती लेख में मिलता है। आन्ध्र प्रदेश पर  विजय प्राप्त करने के बाद इसे प्रथम आंध्र सम्राट कहा गया। इसके सिक्कों पर दो पतवारों वाले जहाज का चित्र नौ शक्ति के पर्याप्त विकास का प्रमाण है।

यज्ञश्री शातकर्णी (165-194 ई. पू.)

सातवाहन शासक यज्ञश्री शातकर्णी व्यापार और जलयात्रा का उसके सिक्के आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात में पाए गए हैं। इन सिक्कों पर जहाज का चित्र है, जो जलयात्रा और समुद्री व्यापार के प्रति उसके प्रेम का परिचायक हैं 

भौतिक संस्कृति के पहलू

 सातवाहनों के सिक्के अधिकांशतः सीसे (लेड) से निर्मित हैं, जो दक्कन में पाए जाते हैं। सातवाहन शासकों ने पोटीन, ताँबे और काँसे के सिक्कों का निर्गमन किया था। करीमनगर जिले (आन्ध्रप्रदेश) के पेड्डबंकुर (200 ई. पू. _200 ई.) में पक्की ईंट और छत में लगने वाले चिपटे छददार खपड़े का प्रयोग पाया गया है। द्वितीय शताब्दी के बने 22 कुएँ भी इस स्थल पर पाए गए हैं। प्लिनी ने लिखा है कि, पूर्वी दक्कन के आन्ध्र प्रदेश में लगा .. के अतिरिक्त दीवार से घिरे 30 नगर थे। अत्यधिक संख्या में मिला और सातवाहन सिक्कों से बढ़ते हुए व्यापार का संकेत मिलता है।

सामाजिक संगठन

सातवाहन, दक्कन की ब्राह्मण जाति के थे। सबसे प्रसिद्ध शासक गौतमीपुत्र शातकर्णी ने कहा है कि, उसने विच्छिन्न होते चातुर्वर्ण्य (चार वर्णों वाली व्यवस्था) को फिर से स्थापित किया और वर्णसंकर (वर्णों और जातियों के सम्मिश्रण) को रोका।

ब्राह्मणों को भूमि अनुदान या जागीर देने वाले प्रथम शासक सातवाहन थे। किन्तु उन्होंने अधिकतर भूमिदान बौद्ध भिक्षुओं को दिया। शिल्प और वाणिज्य में हुई प्रगति के फलस्वरूप इस काल में  अनेक वाणिज्य और शिल्पी का उत्कर्ष हुआ। उन्होंने स्मारक व शिलापट्टिकाओं को स्थापित किया। शिल्पियों में गन्धिकों का नाम दाता के रूप में अनेक बार उल्लेखित है।

गंधिक वे शिल्पी कहलाते थे, जो इत्र आदि बनाते थे। सातवाहनों की सामाजिक व्यवस्था में पितृसतात्मकता के साक्ष्य मिलते हैं। उनके शासकों के नाम उनकी माताओं के नाम पर रखने की प्रथा थी। गौतमीपुत्र, वशिष्ठीपुत्र आदि नाम से स्पष्ट है कि, उनके  समाज में माता की प्रतिष्ठा अधिक थी। किन्तु सारतः सातवाहन राजकुल पितृतंत्रात्मक था, क्योंकि राजसिंहासन का उत्तराधिकारी पुत्र होता था।

प्रशासनिक ढाँचा

सातवाहनों ने अनेक प्रशासनिक इकाइयाँ वही रखीं, जो अशोक के काल में पाई गई थीं। उनके समय में जिले को अशोक के काल की तरह ही आहार कहते थे। उनके अधिकारी, मौर्य काल की तरह ही अमात्य और महामात्य कहलाते थे।

सेनापति को प्रान्त का शासनाध्यक्ष या राज्यपाल बनाया जाता था। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासन का कार्य गौल्मिक को सौंपा जाता था, जिसमें नौ रथ, नौ हाथी, पच्चीस घोड़े और पैंतालीस पैदल सैनिक होते थे। गौल्मिक को ग्रामीण क्षेत्रों में इसलिए रखा जाता था, ताकि वह शान्ति व्यवस्था बनाए रख सके। उनके अभिलेखों में कटक और स्कंधावार शब्दों का अधिक उल्लेख मिलता है।

ये सैनिक शिविर और बस्तियाँ होते थे। सातवाहनों ने ब्राह्मणों और बौद्ध भिक्षुओं को कर-मुक्त ग्रामदान की प्रथा आरम्भ की। सातवाहन राज्य में सामंतों की तीन श्रेणियाँ थीं। पहली श्रेणा का सामंत राजा कहलाता था तथा उसे सिक्का ढलवाने का आधकार होता था। द्वितीय श्रेणी का सामंत महाभोज कहलाता था तथा तृतीय श्रेणी का सामंत सेनापति कहलाता था।

धर्म

सातवाहन शासक ब्राह्मण थे और उन्होंने ब्राह्मणवाद के विजयाभियान का नेतृत्व किया था। वे कृष्ण, वासुदेव आदि वैष्णव देवताओं के उपासक थे। सातवाहन शासकों ने भिक्षुओं को ग्रामदान देकर बौद्ध धर्म को बढ़ाया। इनके राज्य में बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय का प्रभाव था। आन्ध्रप्रदेश में नागार्जुनकोंडा और अमरावती नगर सातवाहनों के शासन में विशेषकर उनके उत्तराधिकारी इक्ष्वाकुओं के शासन में बौद्ध संस्कृति के महत्वपूर्ण केन्द्र बन गए थे।

भाषा

सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत थी। सभी अभिलेख इसी भाषा में और ब्राह्मी लिपि में लिखे हुए हैं। प्राकृत ग्रंथ गाथाहासत्तसई या गाथासप्तशती हाल नामक सातवाहन राजा की रचना बताई जाती हैं। इसमें 700 श्लोक हैं, जो सभी प्राकृत भाषा में हैं।

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