भारतीय संविधान का संशोधन _Bhartiye savindhan sanshondhan
भारतीय संविधान का संशोधन _Bhartiye savindhan sanshondhan
भारतीय संविधान नम्यता और अनम्यता का अनोखा मिश्रण है।* इसका तात्पर्य है कि इसके संशोधन की प्रक्रिया न तो इंग्लैण्ड की भांति अत्यन्त लचीली है और न ही अमेरिका, ऑस्टेलिया या कनाडा की भाँति अत्यन्त कठोर। भारतीय संविधान निर्माता विश्व के संघात्मक संविधानों के संचालन की कठिनाइयों से पूर्णतः अवगत् थे, फलतः उन्होंने संविधान संशोधन के लिए अत्यधिक लचीलेपन या कठोरता से इतर एक मध्यम मार्ग का अनुसरण किया। संविधान संशोधन की यह प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका के संविधान से ग्रहण की गई है।
भारतीय संविधान का निर्माण एक सतत् प्रक्रिया है क्योंकि भारतीय संविधान का संशोधन _Bhartiye savindhan sanshondhan संविधान का अभिन्न अंग हैं। संविधान के भाग 20 (अनुच्छेद.-368) में संसद को संविधान में संशोधन की शक्ति की गयी है। संसद द्वारा अब तक किये गये संशोधनों का विवरण अधोलिखित है।
प्रथम संविधान संशोधन (1951)-इस संशोधन को रोमेश थापर बनाम स्टेट आफ मद्रास (1951) एस.सी. के मार.. उच्चतम न्यायालय के विनिश्चय से उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करने में लिए पारित किया गया था।
इसके द्वारा स्वतंत्रता, समानता एवं सम्पत्ति से सम्बन्धित मल अधिकारों को लागू किए जाने सम्बन्धी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों दूर करने का प्रयास किया गया। वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर इसमें उचित प्रतिबन्ध की व्यवस्था की गई।
इसके लिए अनु. 19 के खण्ड (2) में निर्बन्धन के तीन नये आधार ‘लोक-व्यवस्था’ ‘विदेशी राज्य से मैत्री सम्बन्ध’ और ‘अपराध करने के लिए उत्प्रेरित करना’ जोड़े गये।
भूमि विधियों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से इस संशोधन द्वारा संविधान के अन्तर्गत 9वीं अनुसूची को जोडा गया है। इसमें उल्लिखित कानूनों की सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अन्तर्गत परीक्षा नहीं की जा सकती है। इसके लिए अनु.-31 (अ) और 31 (ब) जोड़ा गया है।
द्वितीय संविधान संशोधन (1952 )-इसके द्वारा 1951 की जनगणना के आधार पर संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व को पुनः निर्धारित किया गया।
तृतीय संविधान संशोधन (1954)-इस संशोधन के द्वारा समवर्ती सूची की 33वीं प्रविष्टि में संशोधन किया गया और इसमें खाद्यान्न, पशुओं के लिए चारा और कच्चा कपास आदि विषयों को रखा गया।
चतुर्थ संविधान संशोधन (1955)-इस संशोधन को बेला – बनर्जी, के मामले में उच्चतम न्यायाल के निर्णय से उत्पन्न कठिनाई . को दूर करने के लिए पास किया गया था, इसके अन्तर्गत व्यक्तिगत – सम्पत्ति को लोकहित में राज्य द्वारा हस्तगत किए जाने की स्थिति में, न्यायालय इसकी क्षतिपूर्ति के सम्बन्ध में परीक्षा नहीं कर सकती।
पाँचवा संविधान संशोधन (1955 )-इसके द्वारा अनुच्छेद3 में संशोधन कर राज्य पुनर्गठन से संबंधित विधेयकों पर राज्यों द्वारा अनुसमर्थन करने की अवधि नियत करने की शक्ति राष्ट्रपति का दी गयी। यदि निर्धारित अवधि के भीतर राज्य अपनी राय व्यक्त नहीं करते तो विधेयक को संसद द्वारा पारित मान लिये जाने का प्रावधान किया गया।
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छठाँ संविधान संशोधन (1956 )-इस संशोधन द्वारा संविधान की सातवीं अनुसूची के संघ सूची में प्रविष्टि-92(क) जाड़कर केन्द्र सरकार को अन्तर्राज्यीय क्रय-विक्रय पर कर लगाने की शक्ति प्रदान की गयी।
सातवाँ संविधान संशोधन (1955)-यह संशोधन राज्यपुनर्गठन अधिनिय, 1955′ को कार्यान्वित करने के लिए पारित किया गया।इसके द्वारा राज्यों का पनर्गठन 14 राज्यों तथा 6 संघ शासित क्षेत्रों में किया गया। साथ ही, इनके अनुरूप केन्द्र एवं राज्य की विधानपालिकाओं में सीटों को पुनर्व्यवस्थित किया गया।
अनुच्छेद. 230, 231 में संशोधन करके उच्च न्यायालयों के .. देवाधिकार को संघ राज्य क्षेत्रों पर बढ़ा दिया गया और दो से अधिक राज्यों के लिए एक उच्च न्यायालय का उपबन्ध किया गया।
आठवाँ संविधान संशोधन (1960)-इसके द्वारा अनु. 334 में संशोधन कर विधानमण्डलों में अनुसूचित जातियो, अनुसूचित जनजातियों और एंग्लो-इण्डियन के लिए स्थानों के आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष तक अर्थात् 1970 तक कर दिया गया।
नौवाँ संविधान संशोधन (1960)-यह संशोधन उच्चतम न्यायालय द्वारा बेरूबारी के मामले में दिये परामर्श को लागू करके के लिए पारित किया गया था। उक्त मामले में न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया था कि भारत-भूमि को किसी विदेशी राज्य के अध्यर्पण के लिए संविधान में संशोधन करना आवश्यक है; अतः प्रथम अनुसूची में आवश्यक परिवर्तन करके बेरूबारी, खुलना आदि क्षेत्रों को पाकिस्तान को दे दिया गया।
दसवाँ संविधान संशोधन (1961)-इसके द्वारा भूतपूर्व पुर्तगाली क्षेत्रों दादर एवं नगर हवेली को भारत में शामिल कर उन्हें केन्द्रशासित प्रदेश का दर्जा प्रदान किया गया।
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ग्यारहवाँ संविधान संशोधन (1961)-इस संशोधन द्वारा संविधान के अनु. 71 में खण्ड 4 जोड़कर यह उपबन्धित किया गया कि निर्वाचक मंडल में रिक्तता के आधार पर राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन की वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती। इस संशोधन को डॉ. खरे के मामले के पश्चात् पारित किया गया था।
बारहवाँ संविधान संशोधन (1962)-इसके द्वारा संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन कर गोवा, दमन एवं दीव को भारत में संघ शासित प्रदेश के रूप में शामिल किया गया।
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तेरहवाँ संविधान संशोधन (1962 )-इसके द्वारा संविधान में। 371 ए जोड़ा गया तथा नागालैण्ड के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान कर उसे एक राज्य का दर्जा दे दिया गया।
चौदहवाँ संविधान संशोधन (1963)-इसके द्वारा केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में पांडिचेरी को संविधान के प्रथम अनुसूची में शामिल किया गया तथा अनु. 23 9क जोड़कर संघ शासित प्रदेशों में विधान मण्डल और मंत्रिपरिषद बनाने का संसद को अधिकार दिया गया।
पन्द्रहवाँ संविधान संशोधन (1963)-इस संशोधन को न्यायाधीश मित्तर के मामले से उत्पन्न समस्या के निराकरण के लिए पारित किया गया था। इसके द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवामुक्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई तथा एक नया अनु. 224क जोड़कर उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय में नियुक्ति से सम्बन्धित प्रावधान किये गए। इसके द्वारा अनु.226 में एक नया खण्ड ( 1-क) जोड़ा गया इसके अधीन उच्च न्यायालय किसी सरकार, प्राधिकारी या व्यक्ति के विरुद्ध निदेश या रिट जारी कर सकता है, भले ही ऐसे व्यक्ति उसके क्षेत्राधिकार में न हों।
सोलहवाँ संविधान संशोधन (1963)-इसके द्वारा अनु. 19 खण्ड 2, 3, 4 में भारत की प्रभुता और अखण्डता के हित में शब्दों को जोड़कर राज्य को अनु. 19 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार को सीमित करने की शक्ति प्रदान की गयी तथा साथ ही तीसरी अनुसूची में भी परिवर्तन कर शपथ ग्रहण के अन्त में ‘भारत की प्रभुत्ता एवं अखण्डता को बनाए रखूगा’ शब्दों को जोड़ा गया।
सत्रहवाँ संविधान संशोधन (1964)-इसके तहत अनु. 31(क) और 9वीं अनुसूची में संशोधन किया गया। इसका उद्देश्य केरल और मद्रास राज्य द्वारा पारित भूमि सुधार अधिनियमों को सांविधानिक संरक्षण प्रदान करना था।
अठारहवाँ संविधान संशोधन (1966 )-इसके द्वारा अनु.-3 में स्पष्टीकरण जोड़कर यह स्पष्ट किया गया कि ‘राज्य’ शब्द के अन्तर्गत संघ राज्य क्षेत्र भी आते हैं। अतः संसद किसी ‘राज्य या संघ राज्य क्षेत्र’ का गठन कर सकती है। तत्पश्चात पंजाब का भाषायी आधार पर पुनर्गठन करते हुए पंजाबी भाषी क्षेत्र को पंजाब एवं हिन्दी भाषी क्षेत्र को हरियाणा के रूप में गठित किया गया। पर्वतीय क्षेत्र को हिमाचल प्रदेश का तथा चण्डीगढ़ को केन्द्रशासित प्रदेश का दर्जा प्रदान किया गया।
उन्नीसवाँ संविधान संशोधन (1966ई.)-इसके तहत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन करते हुए निर्वाचन सम्बन्धी न्यायाधिकरण नियुक्त करने की शक्ति का अन्त कर दिया गया तथा संसद और राज्य विधानमण्डलों के सदस्यों के चुनाव सम्बन्धी विवादों के निपटाने की शक्ति उच्च न्यायालय को दे दिया गया। जिसकी अपील उच्चतम न्यायालय में की जा सकेगी।
बीसवाँ संविधान संशोधन (1966)-इस अधिनियम द्वारा संविधान में एक नया अनु. 233 (क) जोड़कर अनियमितता के अधार पर नियुक्त कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता प्रदान किया गया था।
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इक्कीसवाँ संविधान संशोधन ( 1967 )-इसके तहत् सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अन्तर्गत पन्द्रहवीं भाषा के रूप में शामिल किया गया।*
बाईसवाँ संविधान संशोधन (1969 ई.)-इसके तहत् असोम से अलग करके एक नया राज्य मेघालय बनाया गया।
तेईसवाँ संविधान संशोधन ( 1969)-इसके अन्तर्गत विधानपालिकाओं में अनसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण एवं आंग्ल-भारतीय समुदाय के लोगों का मनोनयन आर – दस वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।
चौबीसवाँ संविधान संशोधन (1971)-यह संशाधन न गोलकनाथ के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय से उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करने के लिए पारित किया गया इस संशोधन द्वारा अनु. 13 और अनु. 368 में संशोधन किया गया। अनु. 368 द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया कि इसमें संविधान संशोधन करने की प्रक्रिया और शक्ति दोनों शामिल हैं तथा अनु. 13 की कोई बात संविधान संशोधन विधि को लागू नहीं होगी।
अनु. 13 में एक नया खण्ड (4) जोड़कर यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि अनु. 13 के अर्थान्तर्गत अनु. 368 के अधीन पारित सांविधानिक संशोधन ‘विधि’ नहीं है। केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने संविधान के (24वें) संशोधन अधिनियम को विधिमान्य घोषित किया।*
पचीसवाँ संविधान संशोधन (1971)-इसे बैकों के राष्ट्रीयकरण के मामले में उच्चतम न्यायाल द्वारा दिये गये निर्णय से उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करने के लिए पारित किया गया था। • अनु. 31(2) में ‘प्रतिकर’ के स्थान पर धनराशि शब्द रखा गया।
एक नया अनुच्छेद 31 (ग) जोड़कर प्रावधानित किया गया कि अनु. 39 के खण्ड (ख) और (ग) में वर्णित निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की विधिमान्यता को इस आधार पर न्यायालय में चुनौती नहीं दी जायेगी कि वे अनु. 14, 19 में प्रदत्त मूल अधिकारों से असंगत हैं या उन्हें कम करती या छीनती हैं।* • केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य के वाद में उच्चतम न्यायालय ने इस संशोधन कुछ भाग को अवैध घोषित कर दिया था।
छब्बीसवाँ संविधान संशोधन (1971)-इसे माधव राव सिंधिया बनाम भारत संघ (प्रीवी पर्स मामले) में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय की कठिनायों को दूर करने के लिए पारित किया गया था। इस मामले में न्यायालय ने भूतपूर्व राजाओं के विशेषाधिकारों को समाप्त करने वाले राष्ट्रपति के अध्यादेश को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
इस संशोधन द्वारा संविधान से अनु. 291 और 362 को निकाल दिया गया जो इन विषयों से सम्बन्धित थे और एक नया अनु. 363 ( क ) जोड़कर भूतपूर्व राजाओं के प्रिवीपर्स तथा विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
सत्ताईसवां संविधान संशोधन (1971)-इसके अन्तर्गत मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश को संघशासित प्रदेशों के रूप में स्थापित किया गया। इसके लिए दो नये अनु.2 39 (ख) और 371 (ग) जोड़े गये।
28वाँ संविधान संशोधन ( 1972 )-इस संशोधन द्वारा भारतीय सिविल सर्विस (ICS ) अधिकारियों को प्राप्त विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया। इससे लिए अनु. 31 2A को संविधान में जोड़ लिया गया तथा अनु. 314 को निरसित कर दिया गया।
29वाँ संविधान संशोधन (1972 )-इसके तहत् केरल भूसुधार (संशोधन) अधिनियम, 1969 तथा केरल भू सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1971 को संविधान की नौवीं अनुसूची में रख दिया गया, जिससे इसकी संवैधानिक वैधता को न्यायालय में चुनौती न दी जा सके।
30वाँ संविधान संशोधन (1972 )-इसके द्वारा संविधान के अनु. 13 3 में संशोधन किया गया। सर्वोच्च न्यायालय में दीवानी विवादों की अपील के लिए 20,000 रुपए से अधिक मूल्य की सीमा समाप्त कर दिया गया। संशोधित अनु. के अनुसार अब दीवानी-मामलों में उच्च न्यायालय के किसी निर्णय, अन्तिम आदेशों के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील करने के लिए मामले में कोई ‘सार्वजनिक महत्त्व का सारवान् प्रश्न’ अन्तर्ग्रस्त होना आवश्यक है।
31वाँ संविधान संशोधन (1974)-इसके तहत संविधान के अनु. 81 में संशोधन कर लोकसभा के सदस्यों की संख्या को 525 से बढ़ाकर 545 कर दिया गया है।*
32वाँ संविधान संशोधन (1974)-इसके द्वारा अनु. 371 में संशोधन किया गया और अनु. 371 D तथा 371E को जोड़ा गया। अनु. 371 D आन्ध्र प्रदेश के लिए विशेष प्रावधान करता है जबकि अनु. 371E संसद को केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए नियम बनाने का अधिकार प्रदान करता है।
33वाँ संविधान संशोधन (1974)- यह संशोधन गुजरात में हुई घटनाओं के परिणाम स्वरूप पारित किया गया था। वहाँ विधानसभा दस्यों को बलपूर्वक तथा डरा-धमका कर विधानसभा से इस्तीफ़ा देने के लिए बाध्य किया गया था। इसके द्वारा अनु. 101 और 191 में संशोधन किया गया है। ।
इसके तहत संसद एवं विधानसभा सदस्यों द्वारा दबाव में या जबरदस्ती किए जाने पर इस्तीफ़ा देना अवैध घोषित किया गया एवं अध्यक्ष को यह अधिकार प्रदान किया गया कि वह सिर्फ स्वेच्छा से दिए गए एवं उचित त्यागपत्र को ही स्वीकार करें।
34वाँ संविधान संशोधन (1974)-इस संशोधन द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों द्वारा पारित भूमि सुधार अधिनियमों को सम्मिलित किया गया।
35वाँ संविधान संशोधन (1974)-इसके तहत सिक्किम का संरक्षित राज्य का दर्जा समाप्त कर उसे ‘सह-राज्य’ के रूप में भारत में शामिल किया गया।
36वाँ संविधान संशोधन (1975)–इसके द्वारा सिक्किम को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करते हुए भारत के 22वें राज्य के रूप में संविधान की प्रथम अनुसूची में स्थान दिया गया तथा अनु. 371च को जोड़कर इसके लिए विशेष प्रावधान किया गया।
37वाँ संविधान संशोधन (1975)-इस संशोधन द्वारा अनु. 239 (क) और 240 में संशोधन किया गया और अरुणाचल प्रदेश के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद् की स्थापना के लिए उपबन्ध किया गया है।
38वाँ संविधान संशोधन (1975)-इस संशोधन का मुख्य उद्देश्य अनु. 352 के अधीन आपात् स्थिति की घोषणा करने में राष्ट्रपति के ‘समाधान’ के प्रश्न को अवाद-योग्य (Non-Justiciable) बनाना था। इसके द्वारा अनु. 352 में दो नये खण्ड (4) और (5), अनु. 356 खण्ड (5) और अनु. 359 में खण्ड (क) और अनु. 360 में खण्ड (5) जोड़ा गया है। इस संशोधन द्वारा अनु. 123 और 213 तथा 239 (ख) में संशाधन कर राष्ट्रपति, राज्यपाल तथा उपराज्यपालों द्वारा अध्यादेश जारी करने के मामले में उनके समाधान के प्रश्न को न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया गया था। ,
39वाँ संविधान संशोधन (1975)-इस संशोधन द्वारा यह उपबन्ध किया गया है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष आर प्रधानमंत्री के निर्वाचन सम्बन्धी विवादों को न्यायालय में । चुनाती नहीं दी जा सकेगी। ऐसे विवादों की सनवाई संसद की विधि द्वारा स्थापित एक जन-समिति (Forum) द्वारा किये जाने का भावधान किया गया है। ज्ञातव्य है कि अन. 71 के तहत राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय का अधिकारिता थी। 44वें संविधान संशो. द्वारा यह प्रावधान पूर्ववत कर दिया गया।
40वाँ संविधान संशोधन (1976)-इसके द्वारा अनु. 297 में संशोधन कर संसद को समय-समय पर विधान बनाकर भारत के राज्य क्षेत्रीय सागर खण्ड (Territoral waters), महाद्वीपीय मग्नतट, समुद्र के नीचे की सब भूमियों (Continental Shelf) और आर्थिक क्षेत्र (Economica Zone) की सीमाओं को निर्धारित करने की शक्ति प्रदान किया गया। इसके पूर्व राज्य क्षेत्रीय सागर-खण्ड आदि की सीमाओं का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा जारी उद्घोषणा द्वारा किया जाता था।
41वाँ संविधान संशोधन (1976)-इस संशोधन द्वारा संविधान की पाँचवी अनुसूची में अनुसूचित जनजातियों के विकास की दृष्टि से संधोधन किया गया है। इसके द्वारा लोकसेवा आयोग के सदस्यों की सेवानिवृत्ति आयु को 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दिया गया है।
42वाँ संविधान संशोधन (1976)-तीसरे आपात काल के दौरान प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी की सरकार द्वारा किया गया यह संशोधन अब तक पारित सभी संशोधनों में सबसे व्यापक था। इसके द्वारा संविधान में 2 नये अध्याय (4-क), (14-क) और १ नये अनु. को जोड़ा गया तथा 52 अनु. में संशोधन किया गया था। इसकी व्यापकता के कारण ही इस संशोधन को लघु संविधान की संज्ञा दी जाती है। प्रमुख परिवर्तन अधोलिखित हैं
संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी पंथनिरपेक्षता और अखण्डता’ ( Socialist, Secularistand and Integrity) शब्दों को जोड़ा गया।*
अनुच्छेद. 31 ग में संधोधन कर सभी नीति निदेशक तत्वों को मौलिक अधिकारों पर प्राथमिकता प्रदान किया गया तथा राज्य के नीति निदेशक तत्वों का विस्तार करते हुए निम्न तीन निदेशक तत्वों को संविधान में शामिल किय गया है (i) समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता (अनु. 39 क), (ii) उद्योगों के प्रबन्ध में कर्मकारों का भाग लेना (अनु. 43-क), (iii) पर्यावरण ( Environment) की रक्षा और सुधार तथा वन और वन्य जीवों की सुरक्षा (अनु. 48-क)। संविधान में भाग-4 क व अनु. 51 क जोड़कर 10 मौलिक कर्तव्यों का समावेश किया गया।* ध्यातव्य है कि वर्तमान में मौलिक * कर्तव्यों को संख्या 11 है।
अनुच्छेद. 74 में संशोधन कर यह स्पष्ट कर दिया गया कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह मानने के लिए बाध्य होगा।
इस संशोधन द्वारा अनु. 368 में दो नया खण्ड (4) और खण्ड (5) जोड़ा गया। खण्ड (4) यह उपबन्धित करता था कि संसद द्वारा किए संविधान संशोधनों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी # तथा खण्ड (5) संदेह के निवारण के लिए यह घोषित करता था कि इस अनु. के अन्तर्गत संविधान के उपबन्धों को जोड़ने परिवर्तित करने या निरसित करने के लिए संसद की विधायी शक्ति पर कोई परिसीमन नहीं होगा।
इस संशोधन द्वारा वन, सम्पदा, शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण तथा परिवार नियोजन, बाट तथा माप, जानवर तथा पक्षियों को सुरक्षा आदि विषयों को समवर्ती सूची के अन्तर्गत कर दिया गया।
लोकसभा एवं विधानसभाओं की अवधि को पाँच से बढ़ाकर छह वर्ष कर दिया गया। सभी विधानसभाओं एवं लोकसभा की सीटों की संख्या को 2001 तक के स्थिर कर दिया गया। आपात उपबन्ध के सम्बन्ध में निम्न दो मुख्य परिवर्तन किया गया- (i) राष्ट्रपति पूरे देश के साथ-साथ अब देश के किसी एक भाग में भी अनु. 352 के तहत आपात की घोषणा कर सकेगा। (ii) अन. 356 के तहत राज्यों में आपात घोषणा के पश्चात् संसद द्वारा अनुमोदन के बाद छः महीने लागू रह सकती थी, अब यह एक वर्ष तक लागू रह सकती है।
इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में एक नया भाग 14क जोड़ा गया। इसमें दो अनु. ( 223 क और 2 2 3 ख) हैं। इसके तहत सिविल सर्वेन्ट्स के लिए न्यायाधिकरणों की स्थापना की व्यवस्था किया गया है।*
केन्द्र को यह अधिकार दिया गया कि वह राज्यों में केन्द्रीय सुरक्षा बलों को तैनात कर सकते हैं।* संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह यह निर्णय कर सकती है कि कौन सा पद लाभ का पद है। यह प्रावधान किया गया कि संसद तथा राज्य विधानमण्डलों के लिए गणपूर्ति आवश्यक नहीं है।
तैंतालीसवाँ संविधान संशोधन (1977)- इसके द्वारा 42वें संविधान संशोधन की कुछ धाराओं को निरस्त किया गया।
44वाँ संविधान संशोधन ( 1978 )-यह संशोधन भी अत्यन्त व्यापक एवं महत्पपूर्ण हैं इसे जनतादल की सरकार ने 42वें संविधान संधोधन द्वारा किये गये अवांछनीय परिवर्तनों को समाप्त करने के लिए पारित किया था। इसके द्वारा किये गये प्रमुख संशोधन निम्नलिखित है• अनु. 352 में राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा का आधार ‘आन्तरिक अशान्ति’ के स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह को रखा गया। अतः अब राष्ट्रपति आपात की उद्घोषणा ‘आन्तरिक अशान्ति’ के आधार पर नहीं की जा सकती बल्कि ‘सशस्त्र विद्रोह’ के आधार पर की जाती हैं।
यह भी उपबन्धित किया गया कि राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की उद्घोषण तभी करेगा, जब उसे मंत्रिमण्डल द्वारा इसकी लिखित सूचना दी जाय। • सम्पत्ति के मूलाधिकार को समाप्त करके इसे अनु. 300 क, के तहत विधिक अधिकार का दर्जा प्रदान किया गया। इसके लिए अनु. 31 तथा अनु. 19 (1) (च) को निरसित किया गया।
अनु. 74 में पुनः संशोधन कर राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया कि वह मंत्रिमण्डल की सलाह, को एक बार पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है किन्तु पुनः दी गई सलाह को मानने के लिए बाध्य होगा।
लोकसभा तथा राज्य विधान सभाओं की अवधि पुनः 5 वर्ष कर दी गयी।
उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी विवाद को हल करने की अधिकारिता पुनः प्रदान कर दी गई।*
45वाँ संविधान संशोधन (1978)-इसके द्वारा लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथ एंग्लो इण्डियन के लिए सीटों का आरक्षण पुनः 10 वर्ष (1990 तक) के लिए बढ़ा दिया गया।
46वाँ संविधान संशोधन (1982 )-इसके द्वारा कर चोरी रोकने के लिए, कुछ वस्तुओं के सम्बन्ध में बिक्रीकर की समान दरें और वसूली की एक समान व्यवस्था को अपनाया गया।
47वाँ संविधान संशोधन (1982 )-इसके द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में कुछ और अधिनियमों को जोड़ा गया।
48वाँ संविधान संशोधन (1984)-इसके द्वारा संविधान के अनु. 356 (5) में परिवर्तन करके यह प्रावधान किया गया कि पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अवधि को दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
49वाँ संविधान संशोधन (1984 )-इसके द्वारा अनु. 244 में संशोधन छठीं अनुसूची के प्रावधानों को त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों पर लागू किया गया तथा त्रिपुरा में स्वायत्तशासी जिला परिषद की स्थापना का प्रावधान किया गया।
50वाँ संविधान संशोधन (1984)-इसके द्वारा अनु. 33 को पुनः स्थापित करके सुरक्षा बलों के मूलधिकारों को प्रतिबन्धित किया गया।
51 वाँ संविधान संशोधन (1984 )-इस संशोधन द्वारा __ अनु. 330 (1) और 3 3 2 (1) में संशोधन किया गया है, नागालैण्ड और मेघालय के स्वतंत्र राज्य बनने के कारण इस संशोधन की आवश्यकता पड़ी। इस संशोधन द्वारा मेघालय, नागालैण्ड अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम की अनुसूचित जनजातियों को लोकसभा में आरक्षण प्रदान किया गया तथा नागालैण्ड और मेघालय की विधानसभाओं में जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी।
52वाँ संविधान संशोधन (1985)-इसके द्वारा संविधान में 10वीं अनुसूची को जोड़कर दल बदल रोकने के लिए प्रावधान किया गया था।
53वाँ संविधान संशोधन (1985)-इस संशोधन द्वारा संघ क्षेत्र मिजोरम को भारत के 23वें राज्य का दर्जा प्रदान किया गया तथा उसे विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए अनु. 371 छ जोड़ा गया।
54वाँ संविधान संशोधन (1986)-अनुसूची-2 (भाग घ) में संशोधन कर सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन में वृद्धि किया गया।
55वाँ संविधान संशोधन (1986)-इसके द्वारा अरुणांचल प्रदेश को भारत के 24वें राज्य का दर्जा प्रदान किया गया तथा अनु. 371 ज को जोड़कर उसके लिए विशेष व्यवस्था की गयी।
56वाँ संविधान संशोधन (1987)- इसके द्वारा गोवा को दमन व दीव से अलग कर राज्य का दर्जा प्रदान कर दिया गया तथा दमन और दीव को केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में ही रहने दिया । साथ ही अनु. 371 झ अन्तःस्थापित कर गोवा के लिए 30 सदस्यीय विधान सभा का प्रावधान किया गया।
57वाँ संविधान संशोधन (1987)-इसके द्वारा अनु. 332 गोधन कर मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड तथा अरुणाचल की विधान सभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गयी।
58वाँ संविधान संशोधन (1987)–इसके द्वारा संविधान में औ394-क जोड़कर ‘संविधान के हिन्दी में प्राधिकृत’ पाठ को प्रकाशित करने के लिए राष्ट्रपति को अधिकार दिया गया।
59वाँ संविधान संशोधन (1988)-इसके द्वारा पंजाब के बारे में निम्नलिखित प्रावधान किया गया था• पंजाब में राष्ट्रपति शासन तीन वर्ष तक के लिए लागू किया जा सकता है। केन्द्र पंजाब में आन्तरिक अशान्ति के आधार पर आपात की घोषणा कर सकता है।* अनु. 21 द्वारा प्रदत्त व्यक्तिगत सवतन्त्रता तथा जीवन के अधिकार को राष्ट्रपति केवल पंजब में निलम्बित कर सकता है।
60वाँ संविधान संशोधन (1988)-इसके द्वारा अनु. 276 (2) में संशोधन कर राज्य या स्थानीय निकाय द्वारा लगाये जाने वाले व्यवसाय कर की सीमा 250 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष कर दिया गया।
61वाँ संविधान संशोधन ( 1989 )-इसके द्वारा अनु. 326 में संशोधन करके लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव में मतदान की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से कम करके 18 वर्ष कर दिया गया।
62वाँ संविधान संशोधन (1989)-इसके द्वारा अनु. 334 में संशोधन कर लोकसभा एवं विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जन जातियों के लिए आरक्षण और 10 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया।
63वाँ संविधान संशोधन (1990)-इसके द्वारा 59वें संविधान संशोधन की व्यवस्था को निरसित कर दिया गया। –
64वाँ संविधान संशोधन (1990)-इसके द्वारा अनु. 3 56(4) में तीसरा ‘परन्तुक’ जोड़कर पंजाब के सम्बन्ध में आपात काल की अधिकतम अवधि ‘तीन वर्ष’ की जगह ‘तीन वर्ष 6 माह’ के लिए – सहाया गया।
65वाँ संविधान संशोधन (1990)-इसके द्वारा अनु. 338 में संशोधन कर अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के है लए विशेष अधिकारी के स्थान पर एक राष्ट्रीय आयोग के गठन का । वावधान किया गया।
66वाँ संविधान संशोधन (1990)-इसके द्वारा विभिन्न राज्यों द्वारा बनाये गये, भूमि सुधार अधिनियमों को नौवीं अनुसूची में प्रविष्टि संख्या 202 के पश्चात 203 से 257 तक जोड़ा गया।
67वाँ संविधान संशोधन (1990)-इसके द्वारा अनु.356 के तीसरे परन्तुक में संशोधन करके पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अवधि 4 वर्ष तक बढ़ा दी गयी।
68वाँ संविधान संशोधन (1991)-इसके द्वारा अनु. 356 के तीसरे परन्तुक में पुनः संशोधन करके पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अवधि 5 वर्ष तक बढ़ा दी गयी, क्योंकि वहाँ चुनाव कराना सम्भव नहीं था।
69वाँ संविधान संशोधन (1991)-इस अधिनियम द्वारा संविधान में दो नये अनुच्छेद, अनु. 239 क क तथा 239 क ख जोड़े गये हैं, जिनके द्वारा संघ क्षेत्र दिल्ली को विशेष दर्जा प्रदान किया गया है, तथा उसका नाम ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ रखा गया और उसके लिए 70 सदस्यीय विधान सभा तथा 7 सदस्यीय मंत्रिपरिषद का उपबन्ध किया गया।
70वाँ संविधान संशोधन (1992 )-इसके द्वारा दिल्ली तथा पाण्डिचेरी संघ राज्य क्षेत्रों के विधानसभा सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में शामिल करने का प्रावधान किया गया।* इसके लिए अनु. 54 में एक स्पष्टीकरण जोड़ा गया।
71वाँ संविधान संशोधन (1992)-इसके तहत संविधान की आठवीं अनुसूची में तीन और भाषाओं कोंकणी, मणिपुरी औ नेपाली को सम्मिलित किया गया।* इनको मिलाकर आठवीं अनुसूची में अब भाषाओं की संख्या 18 हो गई।
72वाँ संविधान संशोधन (1992 )-इसके द्वारा त्रिपुरा विधान सभा में स्थानों की संख्या बढ़ाकर 60 कर दी गयी तथा उसी अनुपात में अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों को आरक्षित कर दिया गया।
73वाँ संविधान संशोधन ( 1993 )-इसके द्वारा संविधान में अनुसूची-11, भाग-9 तथा अनु.243 के पश्चात अनु. 243A-2430, को जोड़कर भारत में ‘पंचायती राज’ की स्थापना का उपबन्ध किया गया।*
74वाँ संविधान संशोधन (1993 )-इसके द्वारा संविधान में अनुसूची-12 तथा भाग १ क (अनु. 243P- 243ZG ) जोड़कर नगरपालिका, नगर निगम तथा नगरपरिषदों से सम्बन्धित प्रावधान किया गया है।*
75वाँ संविधान संशोधन (1993)-इस संशोधन द्वारा अनु. 223 (ख) में संशोधन कर मकान मालिक व किराएदारों के विवादों को शीघ्र निपटाने के लिए न्यायाधिकरणों की स्थापना करने का प्रावधान किया गया है।
76वाँ संविधान संशोधन (1994)-इसके द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में संशोधन किया गया है और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले अधिनियम को नवीं अनुसूची में शामिल कर दिया गया।
77वाँ संविधान संशोधन (1995)-इसके द्वारा अनु. 1 में एक नया खण्ड (4क) जोड़ा गया है जो यह उपबन्धित कर है कि अनु.16 की कोई बात राज्य के अनुसूचित जाति औ अनुसूचित जनजातियों के लिए जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की रा में राज्याधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है प्रोन्नति में आरक्षण के लि कोई उपबन्ध करने से निवारित (वर्जित) नहीं करेगी।* ध्यात है कि मण्डल आयोग के मामले में उच्चतम न्यायालय ने धारि किया था कि सरकारी नौकरियों में, प्रोन्नति में आरक्षण नहीं दिया ज सकता है। इस निर्णय के प्रभाव को दूर करने के लिए यह अधिनियम पारित किया गया था।
78वाँ संविधान संशोधन (1995)-इसके द्वारा नवीं अनुसूर्च में विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 27 भूमि सुधार विधियों को समाविष्ट किया गया है। इसके पश्चात 9वीं अनुसूची में कुल अधिनियमों की संख्या 284 हो गयी।
79वाँ संविधान संशोधन (1999)-इसके द्वारा अनु. 334 में संशोधन कर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए लोकसभा व राज्य विधान सभाओं में आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष के लिए और बढ़ा दिया गया है। अब यह व्यवस्था संविधान लागू होने की तिथि से 60 वर्ष अर्थात् 2010 तक बनी रहेगी।
80वाँ संविधान संशोधन (2000)-यह संशोधन 10वें वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर किया गया है था इसके द्वारा संघ तथा राज्यों के बीच राजस्व विभाजन सम्बन्धी प्रावधानों (अनु. 268-272 ) में परिवर्तन किया गया।
81 वाँ संविधान संशोधन (2000)-इस संशोधन द्वारा अनु. 16 खण्ड ( 4क) के बाद खण्ड (4ख) स्थापित कर अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गो के लिए 50% आरक्षण की सीमा को, उन रिक्तियों के सम्बन्ध में जो उक्त वर्गों के लिए आरक्षित थी और एक वर्ष में भरी नहीं जा सकी हैं, समाप्त कर दिया गया। ध्यातव्य है कि य न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय के प्रभाव को समाप्त करने के लिए पारित किया गया था।
82वाँ संविधान संशोधन (2000)-इस संविधान संशोधन द्वारा राज्यों को संघ या राज्यों की सरकारी नौकरियों में भर्ती हेतु अनुसूचित जातियों एवं जनजायितों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्तांकों में छूट प्रदान करने अथवा प्रोन्नति में मूल्यांकन मानदण्ड घटाने की, अनु. 335 के तहत अनुमति प्रदान की गई है।
83वाँ संविधान संशोधन (2000)-इस संशोधन के द्वारा अनु. 243ङ के तहत अरुणांचल प्रदेश को पंचायतीराज संस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्राविधान न करने की छूट प्रदान की गई है। ध्यातव्य है कि अरुणाचल प्रदेश में कोई अनुसूचित जाति न होने के कारण उसे यह छूट प्रदान की गई है।
84वाँ संविधान संशोधन (2001)-इसके द्वारा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर लगे प्रतिबन्ध को हटाते हुए 1991 की जनगणना के आधार पर परिसीमन की अनुमति दी गयी तथा लोकसभा व विधानसभाओं की सीटों की संख्या 2026 के बाद होने वाली प्रथम जनगणना के आंकड़े प्रकाशित होने तक परिवर्तित न करने का प्रावधान किया गया।
85वाँ संविधान संशोधन (2001)-इसके तहत अन. 16 के खण्ड (क) में संशोधन करके शब्दावली ‘किसी वर्ग की प्रोन्नति के मामले में’ के स्थान पर शब्दावली ‘किसी वर्ग के प्रोन्नति के मामले में भूतलक्षी ज्येष्ठता’ रखी गई है। इसका तात्पर्य यह है कि इन वर्गों की प्रोन्नति भूतलक्षी (17 जून 1995 ) प्रभाव से दी जायेगी।
86वाँ संविधान संशोधन (2002 )-इसके द्वारा 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने सम्बन्धी प्रावधान किया प्रावधा गया है। इसके लिए अनु. 21 क संविधान में जोड़ा गया है तथा अनु. 45 तथा अनु. 51 क में भी संशोधन किया गया है। अनु. 51 क के तहत संशोधन द्वारा 11वाँ कर्तव्य जोड़ा गया है।
87वाँ संविधान संशोधन (2003)-इसके द्वारा परिसीमन जातिय में जनसंख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दिया गया।
88वाँ संविधान संशोधन (2003)-इसके द्वारा अनु. क्या – 268क, को जोड़कर सेवाओं पर कर (Service Tax) का प्रावधान किया गया।
89वाँ संविधान संशोधन (2003 )-इसके द्वारा अनु. 338क को जोड़कर अनुसूचित जनजाति के लिए पृथक् राष्ट्रीय आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया।
90वाँ संविधान संशोधन (2003)-इसके द्वारा असोम विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बोडोलैण्ड के गठन के पश्चात भी यथावत रखने का हैप्रावधान किया गया।
91वाँ संविधान संशोधन ( 2003 )-इसके द्वारा 10वीं अनुसूची में संशोधन कर दल-बदल व्यवस्था को और कड़ा किया गया है।*.अब केवल सम्पूर्ण दल के विलय को मान्यता है इसके द्वारा अनु. 75 तथा 164 में संशोधन कर मंत्रिपरिषद का आकार भी नियत किया गया। अब केन्द्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद् की सदस्य संख्या लोक सभा तथा विधान सभा की कुल सदस्य संख्या का । 15% से अधिक नहीं होगी। किन्तु जहाँ सदन की सदस्य संख्या 40 या उससे कम है, वहाँ अधिकतम 12 होगी।
92वाँ संविधान संशोधन (2003)-इसके द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में संशोधन कर चार नई भाषाओं बोडा, डोंगरी, मैथिली और संथाली को शामिल किया गया है। इस प्रकार आठवीं अनुसूची में वर्तमान में कुल 22 भाषायें हैं।
93वाँ संविधान संशोधन (2005)-इसके द्वारा सामाजिक – शैक्षिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षण संस्थानों में प्रवेश जालन्धी आरक्षण का प्रावधान किया गया है।* अनु.-15 में एक या अनु. 15 (5) को जोड़ते हुए स्पष्ट किया गया है कि इस आन की या अनु. 19 (1) (छ) की कोई बात राज्य को सामाजिक शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति ना कोई प्रावधान बनाने से नहीं रोकेगी, किन्तु अनु. 30 11) के अन्तर्गत अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान इस प्रावधानों के दायरे में नहीं जाएंगे।
94वाँ संविधान संशोधन (2006)-छत्तीसगढ़ और झारखण्ड राज्यों के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप बिहार और मध्य प्रदेश का सम्पर्ण अनुसूचित क्षेत्र झारखण्ड में चला गया है। अतः इस संशोधन अधिनियम द्वारा अनु. 164 के खण्ड (1) में बिहार राज्य के स्थान पर ‘छत्तीसगढ़ और झारखण्ड’ शब्दों को रखा गया है।* ध्यातव्य है कि इन राज्यों में जनजातियों के कल्याण हेतु एक मंत्री का प्रावधान अनु. 164(1) के परन्तुक में किया गया है।
95वाँ संविधान संशोधन (2009)-इसके द्वारा अनु. 334 में संशोधन कर लोक सभा एवं राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों, जनजातियों के लिए चुनावी सीटों के आरक्षण तथा आंग्ल भारतीय सदस्यों के मनोनयन की व्यवस्था को 26 जनवरी, 2010 से आगामी दस वर्ष अर्थात् 26 जनवरी 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
96वाँ संविधान संशोधन (2011)–इसके द्वारा आठवीं अनुसूची में संशोधन कर 15वीं प्रविष्टि की भाषा का नाम ‘उड़िया (Oriya) के स्थान पर ओड़िया (Odia) प्रतिस्थापित किया गया है।’
संविधान का 97वाँ संशोधन (2011)-यह संशोधन सहकारी समितियों के स्वैच्छिक विनिर्माण, स्वायत्त संचालन, लोकतान्त्रिक नियंत्रण तथा व्यवसायिक प्रबंधन के लिए राज्य के नीति निर्देशक तत्व के रूप में अनु. 43ख अंतःस्थापित करता है। संशोधन द्वारा एक नया भाग-१ख भी अंतःस्थापित किया गया है जिसमें (अनु. 243 ZH – अनु. 243- ZT तक) कुल 13 अनु. है। यह संशोधन सहकारी समितियों को संवैधानिक स्तर प्रदान करता है।
98वां संशोधन-इस संशोधन (2 जनवरी 2013 ) के द्वारा अनुच्छेद 371 (जे) को जोड़कर कर्नाटक के राज्यपाल की शक्तियों में विस्तार कर कर्नाटक-आंध्र प्रदेश के क्षेत्र के विकास का उत्तरदायित्व सौंपा गया है।
संविधान का 99वाँ संशोधन (2014)-इस संशोधन द्वारा न्यायालय व उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा स्थानान्तरण के लिए 1993 से चली आ रही कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर नए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission-NJAC) का प्रावधान किया गया था। इसके द्वारा संविधान में तीन नए अनुच्छेद L24A, 124B तथा 124C का समावेश किया गया था, साथ ही
संविधान के अनुच्छेद 127, 128, 217, 222, 224, 224A और 231 में संशोधन किया गया था। किन्तु 14 अक्टूबर, 2015 को न्यायमूर्ति जे0 एस0 केहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 4 : 1 के बहुमत से ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ अधिनियम और 99वें संविधान संशोधन को रद्द कर कॉलेजियम प्रणाली को पुनः बहाल कर दिया।
100वाँ संविधान संशोधन अधि (2015)- इस संशोधन अधिनियम द्वारा भारत और बांग्लादेश के मध्य 1974 में हस्ताक्षरित ‘भू-सीमा समझौता (Land Boundary Agreement)’ और तत्सम्बन्धी प्रोटोकॉल का अनुमोदन किया गया है। इस संशोधन के अनुसार भारत के बांग्लादेश में स्थित 111 एनक्लेव बांग्लादेश को प्राप्त हुए हैं तथा बांग्लादेश के भारत में स्थित 51 एनक्लेव भारत में शामिल किए गए हैं। इन एनक्लेवों को 31 जुलाई, 2015 की मध्य रात्रि से हस्तांतरित मान लिया गया है तथा सीमांकन का कार्य दोनों देशों के सर्वेक्षण विभागों द्वारा 30 जून, 2016 तक पूर्ण कर लिया जाएगा। भूक्षेत्र के आधार पर भारत की जहां 17,160.63 एकड़ भूमि बांग्लादेश को हस्तांरति हुई है, वहीं बांग्लादेश की 7,110.02 एकड़ भूमि भारत को हस्तांरित हुई है।
उल्लेखनीय है कि इस अधिनियम के माध्यम से भारत के प0 बंगाल, असोम, त्रिपुरा एवं मेघालय राज्यों के क्षेत्रों से संबंधित संविधान की प्रथम अनुसूची के उपबन्धों में संशोधन में संशोधन किया गया है।
101वाँ संविधान संशोधन अधि (2016)- इस सं. संशोधन अधिनियम का सम्बन्ध GST (Goods and Service Tax) से है। 8 सितम्बर, 2016 को संविधान (122वाँ संशोधन) विधेयक, 2014 राष्ट्रपति के हस्ताक्षरोपरांत संविधान (101वां संशोधन) अधिनियम, 2016 के रूप में अधिनियमित हुआ। राज्य सभा द्वारा 3 अगस्त, 2016 को तथा लोक सभा द्वारा 8 अगस्त, 2016 को यह संशोधन विधेयक पारित किया गया था।
यह विधेयक संघ एवं राज्य दोनों से संबंधित है अतः इसे अधिनियमित होने से पूर्व कम से कम आधे राज्यों के अनुसमर्थन की आवश्यकता थी। वर्तमान में 8 राज्यों (जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व पश्चिम बंगाल) को छोड़कर अब तक 23 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा इसे अनुसमर्थित किया जा चुका है। इनमें असोम GST को अनुसमर्थन देने वाला पहला राज्य रहा। इस अधिनियम के द्वारा संविधान के भाग 11 (अनुच्छेद 248, 249 एवं 250); भाग 12 (अनुच्छेद 268, 269, 270, 271 तथा 286); भाग 19 (अनुच्छेद 266); भाग 20 (अनुच्छेद 368) तथा छठी सातवीं अनुसूची में संशोधन किया गया है तथा तीन नए अनुच्छेद (अनुच्छेद 246A, 269A तथा 279A) जोड़े गए जबकि अनुच्छेद 268A को समाप्त कर दिया गया है।