भाषा(Language)
भाषा के उपयोग
भाषा के उपयोग भाषा विचारों के आदान-प्रदान का सर्वाधिक उपयोगी साधन है। परस्पर बातचीत लेकर मानव-समाज की सभी गतिविधियों में भाषा की आवश्यकता पड़ती है। संकेतों से कही गई बात में भ्रांति की संभावना रहती है, किन्तु भाषा के द्वारा हम अपनी बात स्पष्ट तथा निर्धांत रूप में दूसरों तक पहुँचा सकते हैं। भाषा का लिखित रूप भी कम उपयोगी नहीं। पत्र, पुस्तक, समाचार-पत्र आदि का प्रयोग हम दैनिक जीवन में करते हैं। लिखित रूप में होने से पुस्तकें, दस्तावेज आदि लम्बे समय तक सुरक्षित रह सकते हैं। रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ तथा ऐतिहासिक शिलालेख आज तक इसलिए सुरक्षित हैं क्योंकि वे भाषा के लिखित रूप में है।
भाषा(Language) की परिभाषा
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शास्त्रों में कहा गया है– “भाष व्यक्तायां वाचि” अर्थात् व्यक्त वाणी ही भाषा है
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भाषा शब्द संस्कृत की भाष् धातु से बना है जिसका अर्थ है कहना/बोलना/अभिव्यक्ति
साधारण शब्दों में – भाषा(Language) की परिभाषा भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है।
सरल शब्दों में- सामान्यतः भाषा मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी को कहते है।
अनेक विद्वानों ने भाषा को विभिन्न रूपों में देखने और परिभाषित करने का प्रयत्न किया हैभारतीय विद्वानों द्वारा
- डॉ शयामसुन्दरदास के अनुसार – मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि-संकेतो का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते है।
- डॉ बाबुराम सक्सेना के अनुसार– जिन ध्वनि-चिंहों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-बिनिमय करता है उसको समष्टि रूप से भाषा कहते है।
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दुनीचंद ने अपनी पुस्तक “हिन्दी व्याकरण” में भाषा की परिभाषा करते हुए लिखा है – “हम अपने मन के भाव प्रकट करने के लिए जिन सांकेतिक ध्वनियों का उच्चारण करते हैं, उन्हें भाषा कहते हैं।”
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महर्षि पतंजलि ने पाणिनि की अष्टाध्यायी महाभाष्य में भाषा की परिभाषा करते हुए कहा है- “व्यक्ता वाचि वर्णां येषां त इमे व्यक्तवाचः।” जो वाणी से व्यक्त हो उसे भाषा की संज्ञा दी जाती है।
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डॉ. भोलानाथ : ‘भाषा उच्चारणावयवों से उच्चरित यादृच्छिक (arbitrary) ध्वनि-प्रतीकों की वह संचरनात्मक व्यवस्था है, जिसके द्वारा एक समाज-विशेष के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।’
भाषा का उद्देश्य
भाषा का उद्देश्य है- संप्रेषण या विचारों का आदान-प्रदान।
भाषा के भेद:
- मूक भाषा
- अस्पष्ट भाषा
- स्पष्ट भाषा
- स्पर्श भाषा
- इंगित भाषा
- वाचिक भाषा
- लिखित भाषा
भाषा के विकास के तीन चरण होते हैं –
बोली
विभाषा
मानक भाषा
बोली
जब कोई भाषा किसी विशेष क्षेत्र में बोली जाती है, तो उसे बोली कहते हैं।
- यह भाषा का क्षेत्रीय रूप होता है।
- भाषा का सबसे छोटा व सीमित रूप ही बोली है।
विभाषा
बोली का अपेक्षाकृत विस्तृत रूप
- कई जिलों अथवा राज्यों तक फैलाव
- साहित्यिक रचनाएँ प्राप्त होती हैं
- विभाषा लिपिबद्ध होती है
- उदाहरण : ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली आदि
उपभाषा:
उपभाषा का क्षेत्र विस्तृत होता है
- समान प्रकृति की बोलियों को एक उपभाषा वर्ग में संगठित रखा जाता है
- एक उपभाषा वर्ग की बोलियों का उद्भव / उत्पत्ति का स्रोत एक ही होता है
एक उपभाषा वर्ग में कई बोलियाँ आ सकती हैं
हिंदी के 5 उपभाषा वर्ग हैं, 17 बोलियाँ हैं :
- पश्चिमी हिंदी- 5 बोलियाँ
- राजस्थानी हिंदी-4 बोलियाँ
- पूर्वी हिंदी – 3 बोलियाँ
- बिहारी हिंदी-3 बोलियाँ
- पहाड़ी हिंदी- 2 बोलियाँ
मानक भाषा
विभाषा का व्याकरण द्वारा परिष्कृत रूप
मानक व्याकरण उपलब्ध
मानक लिपि से सुसज्जित
राष्ट्र भाषा:
परिनिष्ठित भाषा जब एक देश के अधिकतर निवासियों द्वारा बोली, समझी व लिखी जाती है तो वह अपने राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक या सांस्कृतिक गौरव के कारण राष्ट्र भाषा का स्थान प्राप्त कर लेती है
पूरे देश को भावात्मक, राष्ट्रीयता के सूत्र में पिरोने का काम करती
अधिकतर देशों में संविधान द्वारा एक या एक से अधिक भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में मान्यता दी जाती है
उदाहरण : फ्रांस की फ्रांसीसी, रूस की रूसी, जापान की जापानी, श्रीलंका की सिंहली व तमिल आदि
note * भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है
राजभाषा:
किसी राज्य अथवा देश के सरकारी कामकाज/शासन में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा राजभाषा कहलाती है
इसके माध्यम से सभी प्रशासनिक कार्य सम्पन्न किये जाते हैं
उदाहरण:
- – मध्यकाल में भारत में प्रशासन की भाषा फारसी थी
- – अंग्रेजों के समय प्रशासन की भाषा अंग्रेजी थी
भारत व विश्व में बोली जाने वाली भाषाएँ
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फरवरी 2020 को Ethnologue के 22वें संस्करण के अनुसार आज विश्व में 7111 जीवित भाषाएँ हैं अर्थात 7111 भाषाएँ बोली जाती हैं
विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाएँ
- अंग्रेजी / English – 113.2 करोड़
- मंदारिन / चीनी – 111.7 करोड़
- हिंदी / Hindi- 61.5 करोड़
- स्पेनिश / Spanish – 53.4 करोड़
- फ्रेंच / French-28 करोड़
- अरबी / Arabic-27.4 करोड़
- .बंगाली / Bengali – 26.5 करोड़
- रूसी / Russian-25.8 करोड़
- पुर्तगाली / Portuguese – 19.9 करोड़
- . इण्डोनेशियाई / Indonesian-17 करोड़
दुनिया की 10 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में भारत की दो भाषा हिंदी व बंगाली शामिल हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 121 प्रमुख भाषा एवं 270 मातृ भाषा बोली जाती हैं
इन्हें दो भागों में बांटा गया है
भाग A – अनुसूचित भाषा :
संविधान की अनुसूची 8 द्वारा मान्यता, 96.71% भारतीयों की मातृ भाषा इन्हीं में से कोई एक है (कुल 123 मातृ भाषा)
भाग B- गैर-अनुसूचित भाषा :
संविधान द्वारा मान्यता नहीं, 3.29% भारतीयों की मातृ भाषा इन्हीं में से एक है (147 मातृ भाषा)
मात भाषा के आधार पर भारत में बोली जाने वाली मुख्य भाषाएँ –
- हिंदी – 43.63%
- बंगाली – 8.03%
- मराठी – 6.86%
- तेलुगू – 6.70%
- तमिल – 5.7%
- गुजराती – 4.59% 7. उर्दू – 4.19%
- संस्कृत – कुल बोलने वाले – 24,821
भाषा और लिपि
लिपि-शब्द का अर्थ है-‘लीपना’ या ‘पोतना’ विचारो का लीपना अथवा लिखना ही लिपि कहलाता है।
दूसरे शब्दों में- भाषा की उच्चरित/मौखिक ध्वनियों को लिखित रूप में अभिव्यक्त करने के लिए निश्चित किए गए चिह्नों या वर्णों की व्यवस्था को लिपि कहते हैं।
हिंदी और संस्कृत भाषा की लिपि देवनागरी है।
अंग्रेजी भाषा की लिपि रोमन
पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी
उर्दू भाषा की लिपि फारसी है।
नीचे की तालिका में विश्व की कुछ भाषाओं और उनकी लिपियों के नाम दिए जा रहे हैं
. हिंदी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, बोडो :— देवनागरी
. अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, इटेलियन, पोलिश, मीजो : —–रोमन
पंजाबी :——गुरुमुखी
. उर्दू, अरबी, फारसी :—— फारसी
रूसी, बुल्गेरियन, चेक, रोमानियन —–: रूसी
बँगला : ——बँगला
उड़िया :—— उड़िया
असमिया : —-असमिया
हिन्दी में लिपि चिह्न
देवनागरी के वर्णो में ग्यारह स्वर और इकतालीस व्यंजन हैं। व्यंजन के साथ स्वर का संयोग होने पर स्वर का जो रूप होता है, उसे मात्रा कहते हैं; जैसेअ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ क का कि की कु कू के कै को कौ
देवनागरी लिपि
देवनागरी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि है।
‘हिन्दी’ और ‘संस्कृत’ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं।
‘देवनागरी लिपि का विकास ‘ब्राही लिपि’ से हुआ, जिसका सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात नरेश जयभट्ट के एक शिलालेख में मिलता है।
8वीं एवं 9वीं सदी में क्रमशः राष्ट्रकूट नरेशों तथा बड़ौदा के ध्रुवराज ने अपने देशों में इसका प्रयोग किया था। महाराष्ट्र में इसे ‘बालबोध’ के नाम से संबोधित किया गया।
विद्वानों का मानना है कि ब्राह्मी लिपि से देवनागरी का विकास सीधे-सीधे नहीं हुआ है, बल्कि यह उत्तर शैली की कुटिल, शारदा और प्राचीन देवनागरी के रूप में होता हुआ वर्तमान देवनागरी लिपि तक पहुँचा है। प्राचीन नागरी के दो रूप विकसित हुएपश्चिमी तथा पूर्वी। इन दोनों रूपों से विभिन्न लिपियों का विकास इस प्रकार हुआ
प्राचीन देवनागरी लिपि:
पश्चिमी प्राचीन देवनागरी– गुजराती, महाजनी, राजस्थानी, महाराष्ट्री, नागरी
पूर्वी प्राचीन देवनागरी– कैथी, मैथिली, नेवारी, उड़िया, बँगला, असमिया
संक्षेप में ब्राह्मी लिपि से वर्तमान देवनागरी लिपि तक के विकासक्रम को निम्नलिखित आरेख से समझा जा सकता है
ब्राह्मी:
उत्तरी शैली- गुप्त लिपि, कुटिल लिपि, शारदा लिपि, प्राचीन नागरी लिपि
प्राचीन नागरी लिपि
पूर्वी नागरी- मैथली, कैथी, नेवारी, बँगला, असमिया आदि।
पश्चिमी नागरी- गुजराती, राजस्थानी, महाराष्ट्री, महाजनी, नागरी या देवनागरी।
दक्षिणी शैली
देवनागरी लिपि पर तीन भाषाओं का बड़ा महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।
फारसी प्रभाव : पहले देवनागरी लिपि में जिह्वामूलीय ध्वनियों को अंकित करने के चिह्न नहीं थे, जो बाद में फारसी से प्रभावित होकर विकसित हुए- क. ख. ग. ज. फ।
बांग्ला-प्रभाव : गोल-गोल लिखने की परम्परा बांग्ला लिपि के प्रभाव के कारण शुरू हुई।
रोमन-प्रभाव : इससे प्रभावित हो विभिन्न विराम-चिह्नों, जैसे- अल्प विराम, अर्द्ध विराम, प्रश्नसूचक चिह्न, विस्मयसूचक चिह्न, उद्धरण चिह्न एवं पूर्ण विराम में ‘खड़ी पाई’ की जगह ‘बिन्दु’ (Point) का प्रयोग होने लगा।