First Anglo Mysore War
मैसूर विजय
तालीकोटा के प्रसिद्ध ऐतिहासिक युद्ध में विजयनगर साम्राज्य के पतन के पश्चात् उसके अवशेष पर जितने राज्यों का उदय हुआ, उनमें मैसूर भी एक था। इस पर ‘वोडेयार वंश’ का शासन स्थापित हुआ। इस वंश का अंतिम शासक चिक्का कृष्णराज वोडेयार द्वितीय था, जिसका शासनकाल 1734 ई. से 1766 ई. था। इसके शासनकाल में वास्तविक सत्ता दो मंत्री भाइयों देवराज एवं नंजराज के हाथों में केन्द्रित थी। नंजराज ने 1749 ई. में हैदर अली को उसके अधिकारी सैनिक जीवन की शुरुआत का अवसर दिया। 1755 ई. में नजराज ने हैदर को डिंडिगुल के फौजदार पद पर नियुक्त कर दिया।
इस बीच मैसुर की राजधानी श्रीरंगपट्टनम में राजनीतिक अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई थी। जब यह अनिश्चितता अनियंत्रित हो गई और मराठों के आक्रमण का खतरा बढ़ गया, तब 1758 ई. में हैदर अली ने डिंडिगुल से श्रीरंगपट्टनम् आकर हस्तक्षेप किया और नंजराज-देवराज को राजनीति से संन्यास लेने को बाध्य कर दिया। 1761 ई. तक मैसूर राज्य की सारी शक्तियां हैदर अली के हाथों में आ गईं। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान हैदर अली और टीपू सुल्तान के नेतृत्व में मैसूर राज्य उल्लेखनीय शक्ति के रूप में उदित हुआ।
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध( First Anglo Mysore War) 1768-1769
बंगाल में अपनी सुगम सफलता के पश्चात्, स्वाभाविक रूप से अंग्रेज अपनी सैन्य शक्ति को लेकर थोड़ा आश्वस्त हो गए और आस-पास के क्षेत्रों में विस्तार करना शुरू कर दिया। प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (First Anglo Mysore War) अंग्रेजों की आक्रामक नीति का परिणाम था। उन्होंने हैदराबाद के निजाम (1766) के साथ संधि की, और उसे अंग्रेजों को उत्तरी सरकार का क्षेत्र देने के लिए मनाया जिसके बदले में उन्होंने उसकी हैदर अली से सुरक्षा प्रदान करने का वचन दिया।
1766 ई. में हैदर अली मराठों के आक्रमण का सामना कर रहा था। उसी समय अंग्रेजों ने हैदराबाद के निजाम को सामरिक सहायता दी और उसे मैसूर पर आक्रमण करने के लिए उकसाया। हैदर अली को अंग्रेजों के इस दुर्भावनापूर्ण रवैये पर बहुत क्रोध आया और उसने अब पहले अंग्रेजों को ही पाठ पढ़ाने का निश्चय किया। हैदर अली ने मराठों से संधि कर ली और निजाम के साथ ही महफूज खां की सहायता से भी सन्धि कर ली।

अब हैदर अली ने अंग्रेजों के मित्र-राज्य कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों ने हैदर अली एवं निजाम को सितम्बर, 1767 ई. में संगम एवं तिरुवनमलई नामक स्थानों पर पराजित कर दिया। अवसरवादी निजाम ने फिर से पाला बदला और फरवरी, 1705 ई. में जगेजो से सोध कर ली। हैदर अली ने इस धोखे का सही जवाब देते हुए एक बार फिर से अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया।
उसने मंगलोर में बम्बई से आई प्रशिक्षित अंगेज सैनिक टुकड़ी को बुरी तरह हराया और 1769 ई. के जाते-जाते उसने अंग्रेजों को मदास तक धकेल दिया। अस्तित्व का संकट देखते हुए अप्रैल, 1769 ई. में अंग्रेजों ने हैदर अली की शतो पर मदास की सन्धि कर ली। इस सन्धि में अन्य शतों के अतिरिक्त यह व्यवस्था भी थी कि अंगेज हैदर अली को युद्ध का खर्च एवं जुर्माना देंगे। परन्तु, यह युद्ध सन्धि वास्तव में एक विराम सन्धि ही थी।
First Anglo Mysore War
First Anglo Mysore War
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First Anglo Mysore War
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