Geography PDF In Hindi
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Geography Nots In Hindi
भूकंप क्या है
भूकम्प भू-पृष्ठ पर होने वाला आकस्मिक कंपन है जो भूगर्भ में चट्टानों के लचीलेपन या समस्थिति के कारण होनेवाले समायोजन का परिणाम होता है। यह प्राकृतिक व मानवीय दोनों ही कारणों से हो सकता है। प्राकृतिक कारणों में ज्वालामुखी क्रिया, विवर्तनिक अस्थिरता, संतुलन स्थापना के प्रयास, वलन व भ्रंशन प्लूटोनिक घटनाएं व भूगर्भिक गैसों का फैलाव आदि शामिल किए जाते है। रोड के ‘प्रत्यास्थ-पुनश्चलन सिद्धांत’ के अनुसार प्रत्येक चट्टान) में तनाव सहने की एक क्षमता होती है।
उसके पश्चात् यदि तनाव बल और अधिक हो जाए तो चट्टान टूट जाता है तथा टूटा हुआ भाग पुनः अपने स्थान पर वापस आ जाता है। इस प्रकार चट्टान, में भ्रंशन की घटनाएं होती है एवं भूकम्प आते है। कृत्रिम या मानव निर्मित भूकम्प मानवीय क्रियाओं की अवैज्ञानिकता के परिणाम होते हैं। इस संदर्भ में विवर्तनिक रूप से अस्थिर प्रदेशों में सड़कों, बांधों, विशाल जलाशयों आदि के निर्माण – का उदाहरण लिया जा सकता है। इसके अलावा परमाणु परीक्षण भी भूकम्प के लिए उत्तरदायी हैं।
भूकम्प आने के पहले वायुमंडल में ‘रेडॉन’ गैसों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। अतः इस गैस की मात्रा में वृद्धि का होना उस प्रदेश विशेष में भूकम्प आने का संकेत होता है। जिस जगह से भूकम्पीय तरंगें उत्पन्न होती हैं उसे ‘भूकम्प मूल’ (Focus) कहते है तथा जहाँ सबसे पहले भूकम्पीय लहरों का अनुभव किया जाता है उसे भूकम्प केन्द्र (Epi-centre) कहते हैं।
भूकम्पमूल की गहराई के आधार पर भूकम्पों को तीन वर्गों में रखा जाता है
- सामान्य भूकम्प :- 0-50 किमी
- मध्यवर्ती भूकम्प :- 50-250 किमी.
- गहरे या पातालीय भूकम्प- ‘250-700 किमी.
भूकम्प के इस दौरान जो ऊर्जा भूकम्प मूल से निकलती है, उसे ‘प्रत्यास्थ ऊर्जा’ (Elastic Energy) कहते हैं। भूकम्प के दौरान कई प्रकार की भूकम्पीय तरंगें (Seismic Waves) उत्पन्न होती हैं जिन्हें तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है
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भारत की नदियाँ
भारत नदियों का देश है। भारत के आर्थिक विकास में नदियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। नदियाँ यहाँ आदि-काल से मानव के जीविकोपार्जन का साधन रही हैं। यहाँ 4,000 से भी अधिक छोटी-बड़ी नदियाँ मिलती हैं, जिन्हें 23 वृहद् एवं 200 लय स्तरीय नदी बेसिनों में विभाजित किया जा सकता है। उत्पत्ति के आधार पर भारत की नदियों का वर्गीकरण मुख्य रूप ने दो वर्गों में किया गया है- हिमालय की नदियाँ तथा प्रायद्वीपीय नदियाँ। इन दोनों नदी-तंत्रों के बीच अपवाह लक्षणों तथा जलीय विशेषताओं में महत्वपूर्ण अंतर पाए जाते हैं।
हिमालय की नदियाँ
हिमालय की उत्पत्ति के पूर्व तिब्बत के मानसरोवर झील के पास से निकलने वाली सिंधु, सतलज एवं ब्रह्मपुत्र नदी टेथिस भूसन्नति में गिरती थीं। हिमालय की नदियों के बेसिन बहुत बड़े हैं एवं उनके जलग्रहण क्षेत्र सैकड़ों-हजारों वर्ग किमी. पर विस्तृत हैं। उदाहरण के लिए, गंगा नदी का जलग्रहण क्षेत्र लगभग 9 लाख वर्ग किमी. है। चूँकि हिमालय की नदियाँ ‘पूर्ववर्ती नदियों’ के उदाहरण हैं एवं हिमालय के उत्थान के क्रम में निरन्तर अपरदन कार्य करती है। अतः इनके द्वारा गॉर्ज महाखड्डों या गॉर्ज का निर्माण हुआ है। ये नदियाँ अभी भी युवा अवस्था में हैं और निरन्तर अपरदन कार्य में लगी हुई हैं। हिमालय की नदियाँ अपेक्षाकृत बड़ी हैं, जैसे- सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, गंगा, सतलज, यमुना आदि।
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भारत की मिट्टियाँ
मिट्टी एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है। मृदा शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘सोलम’ (Solum) से हुई है, जिसका अर्थ है ‘फर्श’। प्राकृतिक रूप से उपलब्ध मृदा पर कई कारकों का प्रभाव होता है, जैस- मूल पदार्थ, धरातलीय दशा, प्राकृतिक वनस्पति, जलवायु, समय आदि। वनस्पतियाँ मिट्टी में ह्यूमस (जैविक पदार्थ) की मात्रा को निर्धारित करती हैं। मृदा निर्माण की प्रक्रिया को मृदाजनन (Pedo genesis) कहते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने भारत की मिट्टियों का विभाजन 8 प्रकारों में किया है। ये निम्न हैं
जलोढ़ मिट्टी :::-
यह मिट्टी देश के 40 प्रतिशत भागों में लगभग 15 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है। इसमें रेत, गाद, मृत्तिका (क्ले) के भिन्न-भिन्न अनुपात होते हैं। तटीय मैदानों व डेल्टा प्रदेशों में यह प्रचुरता से मिलती है। गिरिपाद मैदानों में भी इसकी बहुतायत है। भूगर्भशास्त्रीय दृष्टिकोण से इसे बांगर व खादर में विभक्त किया जाता है। प्राचीन जलोढ़क को ‘बांगर’ कहते है, जिसमें कंकड़ व कैल्शियम कार्बोनेट भी होता है। इसका रंग काला या भूरा होता है। इसका विस्तार नदी के बाढ़ के मैदानी क्षेत्र में पाया जाता है, जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ के दारान मिट्टी की नवीन परत का जमाव होता है। बांगर मिट्टियों का उर्वरता बनाए रखने के लिए भारी मात्रा में उर्वरकों की आवश्यकता होती है।
खादर मिट्टी से यह लगभग 30 मी. की ऊँचाई पर मिलता है। नवीन जलोढ़ जिसे खादर भी कहा जाता है, प्रत्येक साल बाढ़ द्वारा लाई गई मिट्टियाँ होती हैं। बांगर की अपेक्षा यह अधिक उपजाऊ होती है। जलोढ़ मिट्टियाँ पोटाश, फास्फोरिक अम्ल, चूना व कार्बनिक तत्वों में धनी होती हैं, परन्तु इसमें नाइट्रोजन व ह्युमस की कमी पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी धान, गेहूँ, गन्ना, दलहन, तिलहन आदि की खेती के लिए उपयुक्त है।
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भारत के बन्दरगाह
अंडमान निकोबार द्वीप समूह सहित देश की मगर 1517 किमी. लम्बी तटरेखा पर 13 बड़े और 200 मध्यम व कोरे बंदरगाह स्थित है। बड़े बंदरगाहों का नियंत्रण केन्द्र सरकार किया जाता है जबकि छोटे व मंझोले बंदरगाह संविधान की समवर्ती सूची में शामिल हैं, जिनका प्रबंधन एवं प्रशासन सम्बंधित राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। हमारे देश में पर्वी समुद्र तट पर स्थित बड़े बंदरगाह तूतीकोरिन, चेन्नई, एन्नौर विशाखापत्तनम, पारादीप, कोलकाता (हल्दिया डॉकयार्ड सहित) हैं, जबकि पश्चिमी तट पर स्थित बंदरगाहों में कांडला, मुम्बई, न्हावा शेवा, न्यू मंगलुरु, कोचीन तथा मार्मागाओ को शामिल किया जाता है।
जून, 2010 से ‘पोर्ट ब्लयेर’ बंदरगाह को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सभी बंदरगाहों के क्षेत्राधिकार के साथ प्रमुख बंदरगाह घोषित कर दिया गया है। इस प्रकार, यह देश का 13वाँ प्रमुख बंदरगाह बन गया है। ये बड़े पत्तन कुल यातायात के लगभग तीन-चौथाई भाग का संचालन करते हैं।
भारत के 13 बन्दरगाह
1. कांडला :::– गुजरात में कच्छ की खाडी के तट पर स्थित, यह एक ज्वारीय बंदरगाह है। यहाँ पर सरकार ने मुक्त व्यापार क्षेत्र स्थापित किया है। उत्तर भारत को आपूर्ति करने वाला यह सबसे बड़ा बंदरगाह है।
2. मुंबई ::- वर्ष-पर्यन्त खुला रहने वाला यह प्राकृतिक बंदरगाह व पत्तन प्राकृतिक कटान में सालसेट द्वीप पर स्थित है। यह देश का सबसे बड़ा बदरगाह है, जहाँ सर्वाधिक समुद्री यातायात किया जाता है। यहाँ से मुख्यतः सूती एवं ऊनी कपड़े, चमड़े का सामान, पेट्रोलियम, मैंगनीज, मशीन, इंजीनियरिंग सामान आदि का निर्यात किया जाता है।
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भारत : एक सामान्य परिचय
भारत की भौगोलिक स्थिति पृथ्वी के उत्तरी-पूर्वी गोलार्द्ध में 8:4′ से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तथा 68°7′ से 97°25′ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। 82 1/2 पूर्वी देशान्तर इसके लगभग मध्य से होकर गुजरती है इसी देशांतर के समय को देश का मानक समय माना गया है। यह इलाहावाद के निकट नैनी से होकर गुजरती है। जो ‘कि भारत के पाँच राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा तथा आन्ध्र प्रदेश से जाती है। यहाँ का समय ग्रीनविच समय से 5 घंटा 30 मिनट आगे है। ‘
कर्क रेखा’ भारत के लगभग मध्य भाग एवं आठ राज्यों से गुजरती है वे हैं-गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल त्रिपुरा तथा मिजोरम। पूरे भारत का लगभग अधिकांश क्षेत्र मानसनी जलवायु वाले क्षेत्र के अंतर्गत आता है लेकिन कर्क रेखा इसे उण्ण तथा उपोष्ण कटिबंधों में बाँटती है।
भारतीय भू-भाग की लंबाई पूर्व से पश्चिम तक 2,933 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण तक 3,214 किमी. हैं। इस प्रकार, भारत लगभग चतुष्कोणीय देश है। प्रायद्वीपीय भारत त्रिभुजाकार में होने के कारण हिन्द महासागर को 2 शाखाएँ अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में विभाजित करता है। हिंद महासागर और उसकी शाखाएँ अरब सागर व बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में तटीय सीमा बनाती है। भारत की स्थलीय सीमा की लम्बाई 15,200 किमी. तथा मुख्य भूमि की तटीय सीमा की लम्बाई 6,100 किमी. है। द्वीपों समेत देश के कुल तटीय सीमा 7515.5 किमी. है। इस प्रकार, भारत की कुल सीमा 22,73 6.5 (15200+ 7516.5) किमी. है। ‘गुजरात’ की तटीय सीमा सबसे लम्बी है, क्योंकि इसमें सर्वाधिक क्रीक हैं।
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अक्षांश रेखाएँ देशांतर रेखाएँ
अक्षांश:
भू-पृष्ठ पर विषुवत रेखा या भूमध्यरेखा (Equator) के उत्तर या दक्षिण में एक याम्योत्तर (Meridian) पर किसी भी बिन्दु को पृथ्वी के केन्द्र से मापी गई कोणीय दूरी, अक्षांश कहलाती है। इसे अंशों, मिनटों व सेकेंडों में दर्शाया जाता है। भूमध्यरेखा 0° का अक्षांश है। यह पृथ्वी को दो बराबर भागों में बाँटता है। भूमध्यरेखा से समानान्तर ध्रुव तक दोनों गोलार्द्ध में अनेक वृत्तों का निर्माण होता है।
ये वृत्त ‘अक्षांश रेखाएँ’ कहलाती हैं। उत्तरी व दक्षिणी गोलार्द्धा में यह 0° से 90° तक पाई जाती है। इस प्रकार 181 अक्षांश रेखाएँ होती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में 237°N कर्क रेखा (Tropic of Cancer) और 66%°N उत्तरी उपध्रुव वृत्त (Sub Arctic) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में 23/° S मकर रेखा (Tropic of Capricorn) और 667°S दक्षिणी उपध्रुव वृत्त (Sub-Antarctic) कहलाते हैं। प्रत्येक 1° की अक्षांशीय दूरी लगभग 111 किमी. है, जो पृथ्वी के गोलाकार होने के कारण भूमध्य रेखा से ध्रुवों तक भिन्न-भिन्न मिलती है।
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पृथ्वी की गतियाँ
पृथ्वी सौरमंडल का एक ग्रह है। इसकी दो गतियाँ हैं
1.. घूर्णन (Rotation) अथवा दैनिक गति
2. परिक्रमण (Revolution) अथवा वार्षिक गति
घूर्णन अथवा दैनिक गति
पृथ्वी सदैव अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व लटू की भांति घूमती रहती है, जिसे ‘पृथ्वी का घूर्णन या परिभ्रमण’ कहते हैं। इसके कारण दिन व रात होते हैं। अतः इस गति को ‘दैनिक गति’ भी कहते हैं।
नक्षत्र दिवस (Sideral Day):
एक मध्याह्न रेखा के ऊपर किसी निश्चित नक्षत्र के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच की अवधि को नक्षत्र दिवस कहते हैं। यह 23 घंटे व 56 मिनट अवधि की होती है।
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ब्रह्मांड
मानव मस्तिष्क में एक क्रमबद्ध रूप में जब सम्पूर्ण विश्व का चित्र उभरा तो उसने इसे ब्रह्मांड (COSMOS) की संज्ञा दी। मिस्र-यूनानी परम्परा के प्रख्यात खगोलशास्त्री क्लाडियस टॉलमी (140 ई.) ने सर्वप्रथम इसका नियमित अध्ययन कर “जियोसेन्ट्रिक अवधारणा’ का प्रतिपादन किया। इस अवधारणा के अनुसार पृथ्वी ब्रह्मांड के केन्द्र में है तथा सूर्य व अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। ब्रह्मांड के संदर्भ में यह अवधारणा लम्बे समय तक बनी रही। परन्तु 1543 ई. में कॉपरनिकस ने जब ‘हेलियोसेन्ट्रिक अवधारणा’ का प्रतिपादन किया तो उसके पश्चात् ब्रह्मांड के संदर्भ में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इस अवधारणा के तहत कॉपरनिकस ने यह बताया कि ब्रह्मांड के केन्द्र में पृथ्वी नहीं, अपितु सूर्य है।
यद्यपि ब्रह्मांड सम्बंधी उनकी अवधारणा सौर परिवार तक सीमित थी, तथापि इस अवधारणा ने ब्रह्मांड के अध्ययन की दिशा ही बदल दी। 1805 ई. में ब्रिटेन के खगोलशास्त्री हरशेल ने दूरबीन की सहायता से अंतरिक्ष का अध्ययन कर बताया कि सौरमंडल आकाशगंगा का एक अंश मात्र है। अमेरिका के खगोलशास्त्री एडविन पी.हब्बल ने 1925 ई. में यह स्पष्ट किया कि दृश्यपथ में आने वाले ब्रह्मांड का व्यास 250 करोड़ प्रकाश वर्ष है तथा इसके अंदर हमारे आकाशगंगा की भाँति लाखों आकाशगंगाएँ हैं। वस्तुतः ब्रह्मांड की अवधारणा में क्रमिक परिवर्तन हुए एवं इसकी उत्पत्ति की व्याख्या के संदर्भ में कई सिद्धांत भी दिए गए हैं, जिनमें निम्न प्रमुख हैं- .
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सौरमंडल
सूर्य एवं उसके चारों ओर भ्रमण करने वाले 8 ग्रह, 172 उपग्रह, धूमकेतु, उल्काएँ एवं क्षुद्रग्रह संयुक्त रूप से सौरमंडल कहलाते हैं। सूर्य जो कि सौरमंडल का जन्मदाता है, एक तारा है. जो ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करता है। सूर्य की ऊर्जा का स्रोत. उसके केन्द्र में हाइड्रोजन परमाणुओं का नाभिकीय संलयन द्वारा हीलियम में बदलना है।
सूर्य की संरचना
सौरमंडल मैं सूर्य का जो भाग हमें आँखों से दिखाई देता है, उसे प्रकाशमंडल (Photosphere) कहते हैं। सूर्य का नातिम भाग जो केवल सूर्यग्रहण के समय दिखाई देता है. कोरोना (Corona) कहलाता है। कभी-कभी प्रकाशमंडल से परमाणुओं का तूफान इतनी तेजी से निकलता है कि सूर्य की आकर्षण शक्ति को पार कर अंतरिक्ष में चला जाता है। इसे सौर ज्वाला (Solar Flares) कहते हैं।
जब यह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो हवा के कणों से टकराकर रंगीन प्रकाश (Aurora Light) उत्पन्न करता है, जिसे उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव पर देखा जा सकता है। उत्तरी ध्रुव पर इसे अरौरा बोरियालिस एवं दक्षिणी ध्रुव पर अरौरा आस्ट्रेलिस कहते हैं। सौर ज्वाला जहाँ से निकलती है, वहाँ काले धब्बे-से दिखाई पड़ते हैं। इन्हें ही सौर-कलंक (Sun Spots) कहते हैं। ये सूर्य के अपेक्षाकृत ठंडे भाग हैं, जिनका तापमान 1500°C होता है। सौर कलंक प्रबल चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जित करता है, जो पृथ्वी के बेतार संचार व्यवस्था को बाधित करता है। इनके बनने-बिगड़ने की प्रक्रिया औसतन 11 वर्षों में पूरी होती है, जिसे सौर-कलंक चक्र (Sunspot-Cycle) कहते है।
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Vanaspati In Hindi
उष्णकटिबंधीय सदाहरित वन
- 200 सेमी. से अधिक ल वर्षा के क्षेत्रों में ये वन मिलते हैं। इसके मुख्य क्षेत्र सह्याद्रि (पश्चिमी घाट), शिलांग पठार, अंडमान-निकोबार द्वीप समह और लक्षद्वीप हैं।
- उत्तरी सह्याद्रि प्रदेश में इन वनों को ‘शोलास मै “धन’ के नाम से जाना जाता है।
- विषुवतीय वनों की तरह ही इन वनों की लकड़ियाँ कठोर होती हैं एवं वृक्षों की अनेक प्रजातियाँ मिलती है।
- पेड़ों की ऊँचाई 60 मीटर से भी अधिक मिलती है।
- यहाँ पाए जाने वाले प्रमुख वृक्ष महोगनी, आबनूस, जारूल, बाँस, बेंत, सिनकोना और रबर है। ये वन मसालों के बागानों के के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
- रबर और सिनकोना दक्षिणी सह्याद्रि और अंडमान-निकोबार में मिलते हैं। अंडमान-निकोबार का 95% भाग इन्हीं वनों से ढंका है।
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Indian Crops In Hindi
चावल (Rice):
- यह ग्रेमिनी कुल का एक उष्णकटिबंधीय फसल है एवं भारत की मानसूनी जलवायु में इसकी अच्छी कृषि की जाती है।
- चावल हमारे देश की सबसे प्रमुख खाद्यान्न फसल है।
- गर्म एवं आर्द्र जलवायु की उपयुक्तता के कारण इसे खरीफ की फसल के रूप में उगाया जाता है।
- देश में सकल बोई गई भूमि के 23% क्षेत्र में एवं खाद्यान्नों के अंतर्गत आने वाले कुल क्षेत्र में 47% भाग पर चावल की कृषि की जाती है।
- विश्व में चावल के अंतर्गत आने वाले सर्वाधिक क्षेत्र (28%) भारत में हैं जबकि उत्पादन में इसका चीन के बाद दूसरा स्थान है।
- भारत में विश्व के कुल चावल उत्पादन का लगभग 21% चावल पैदा होता है।
- कृष्णा-गोदावरी डेल्टा क्षेत्र को भारत के ‘चावल के. कटोरे’ के नाम से भी जाना जाता है।
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Brahmaputra Nadi In Hindi
- ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र (2,900 किमी.) विश्व की सबसे लम्बी नदियों में से एक है तथा जल विसर्जन के कुल आयतन की दृष्टि से यह संसार की चार बड़ी नदियों में शामिल है।
- इसका अपवाह तंत्र तीन देशों- तिब्बत (चीन), भारत व बांग्लादेश में विस्तृत है। इसका अपवाह क्षेत्र 5,80,080 वर्ग किमी. में फैला हुआ जिसमें से भारत में यह 1,346 किमी. बहती है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 340,000 वर्ग किमी. है।
- यह कैलाश श्रेणी के दक्षिण मानसरोवर झील के निकट महान हिमनद (आंग्सी ग्लेशियर) से निकलती है।
- इस नदी का बेसिन मानसरोवर झील से मरियन ला दर्रे द्वारा पृथक होता है। ब्रह्मपुत्र का अधिकतर मार्ग तिब्बत में है जहाँ इसका स्थानीय नाम सांगपो (यारलुंग) है, जिसका अर्थ होता है-शुद्ध करनेवाला।
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Ganga Nadi In Hindi
गंगा के बाएँ तट की मुख्य सहायक नदियाँ पश्चिम से पूर्व’ इस प्रकार हैं
- गंगा के बाएँ तट की मुख्य सहायक नदियाँ पश्चिम से पूर्व’ इस प्रकार हैं- रामगंगा, गोमती, घाघरा. गंडक, कोसी, बूढ़ी गंडक, बागमती तथा महानंदा। गंगा नदी की सबसे अधिक लम्बाई उत्तर प्रदेश में है।
रामगंगा नदी :
- यह नदी गैरसेण के निकट गढ़वाल की पहाड़ियों से निकलने वाली अपेक्षाकृत छोटी नदी है।
- इस नदी का उद्गम एक हिमनद है इसलिए इस नदी में वर्षा ऋतु एवं शुष्क ऋतु में पानी की मात्रा का बहुत अधिक अंतर मिलता है।
- शिवालिक को पार करने के बाद यह अपना मार्ग दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बनाती है और उत्तर प्रदेश में नजीबाबाद के निकट मैदान में प्रवेश करती है।
- अंत में कन्नौज के निकट यह -गंगा नदी में मिल जाती है। यह नदी 600 किमी. लंबी है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 32,800 वर्ग किमी.है।
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Rice Bowl of India
भारत का चावल का कटोरा किस क्षेत्र में जाना जाता है?
- कृष्णा-गोदावरी डेल्टा क्षेत्र को ऐतिहासिक रूप से भारत का चावल का कटोरा कहा जाता है
- चावल का कटोरा शब्द का उपयोग छत्तीसगढ़ के लिए भी किया जाता है।
- आंध्र प्रदेश में पूर्वी गोदावरी जिले को आंध्र प्रदेश के चावल…………..
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Also Read History Notes In Hindi
Adhunik Bharat Ka Itihas
आधुनिक भारतीय इतिहास के स्रोत
भारतीय इतिहास लेखन ने भारत में यूरोपियों के आगमन के साथ न केवल उपागम, उपचार और तकनीक में अपितु ऐतिहासिक साहित्य की मात्रा में भी प्रबल परिवर्तन को अनुभव किया। शायद कोई भी अन्य कालावधि या देश 18वीं शताब्दी से 20वीं शताब्दी के दौरान ऐतिहासिक सामग्री की प्रचुरता पर भारत जैसी गर्वोक्ति नहीं कर सका। आधुनिक भारत के इतिहास के निर्माण में राजकीय अभिलेखों–विभिन्न स्तरों पर सरकारी अभिकरणों के दस्तावेज–को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता है।
राजकीय अभिलेख
ईस्ट इंडिया कंपनी के अभिलेखों ने 1600–1857 की कालावधि के दौरान व्यापार दशाओं का विस्तृत वर्णन प्रदान किया। यह सत्य है कि ब्रिटेन की वाणिज्यिक कंपनी ने हजारों मील दूर एक बड़े क्षेत्र पर अपनी राजनीतिक सर्वोच्चता स्थापित की, जिसके लिए एक प्रकार के प्रशासन की आवश्यकता थी, जो पूरी तरह कागजों पर था। प्रत्येक नीति लिखित में होती थी और प्रत्येक व्यवसाय एवं लेन–देन प्रेषण, परामर्श एवं कार्रवाई, गुप्त पत्रों एवं अन्य पत्राचार के माध्यम से होता था, जिसके परिणामस्वर कल्पनातीत मात्रा में ऐतिहासिक सामग्री में वृद्धि हुई।
Jallianwala Bagh Hatyakand
जलियांवाला बाग हत्याकांड( Jallianwala Bagh Hatyakand ) कब हुआ ?
अमृतसर हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित हुआ। शुरू में प्रदर्शनकारियों ने किसी प्रकार की हिंसा नहीं की। भारतीयों ने अपनी दुकानें बंद कर दी और खाली सड़कों ने ब्रिटिश सरकार द्वारा दिए गए धोखे को लेकर भारतीयों की नाराजगी जाहिर की। 9 अप्रैल को, राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलु और डा. सत्यपाल को ब्रिटिश अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया।
इस घटना से हजारों भारतीयों में रोष व्याप्त हो गया और वे 10 अप्रैल, 1919 को सत्याग्रहियों पर गोली चलाने तथा अपने नेताओं डा. सत्यपाल व डा. किचलू को पंजाब से बलात् बाहर भेजे जाने का विरोध कर रहे थे। जल्द ही विरोध-प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया, चूंकि पुलिस ने गोली चलाना शुरू कर दिया, जिसमें कुछ प्रदर्शनकारी मारे गए जिससे काफी तनाव फैल गया। दंगे में पांच अंग्रेज भी मारे गए और मार्सेला शेरवुड, एक अंग्रेज मिशनरी महिला, जो साईकिल पर जा रही थी, को पीटा गया।
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World War 2 in Hindi
1 सितम्बर, 1939 को हिटलर की सेना ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। 3 सितंबर को ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। युद्ध की घोषणा के बावजूद ब्रिटेन और फ्रांस में से कोई भी पोलैंड की मदद के लिए नहीं पहुंचा।
3 सप्ताह में पोलैंड परास्त हो गया। ब्रिटेन और फ्रांस ने पश्चिम में भी कोई सैनिक कार्रवाई आरंभ नहीं की थी। द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो चुका था, लेकिन अभी वह पूर्व में यूरोप के एक छोटे-से हिस्से तक सीमित था। युद्ध की घोषणा के बाद लगभग एक महीने तक छोटी-मोटी नौसैनिक झड़पों को छोड़कर ब्रिटेन और फ्रांस की जर्मनी के साथ कोई वास्तविक युद्ध नहीं हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के इस दौर को इतिहास में वाक्-युद्ध कहा गया है।
पूर्वी पोलैंड और बाल्टिक राज्यों पर सोवियत कब्जा
पोलैंड पर जर्मनी के आक्रमण के कुछ दिन बाद सोवियत संघ ने पोलैंड के उन पूर्वी क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया, जो पहले रूसी साम्राज्य के यूक्रेन तथा बेलारूस प्रदेशों के अन्तर्गत थे। नवंबर 1939 में सोवियत संघ और फिनलैंड के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया। यह युद्ध मार्च 1940 में सोवियत-फिनिश शांति संधि के साथ समाप्त हुई।
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First Anglo Mysore War
तालीकोटा के प्रसिद्ध ऐतिहासिक युद्ध में विजयनगर साम्राज्य के पतन के पश्चात् उसके अवशेष पर जितने राज्यों का उदय हुआ, उनमें मैसूर भी एक था। इस पर ‘वोडेयार वंश’ का शासन स्थापित हुआ। इस वंश का अंतिम शासक चिक्का कृष्णराज वोडेयार द्वितीय था, जिसका शासनकाल 1734 ई. से 1766 ई. था। इसके शासनकाल में वास्तविक सत्ता दो मंत्री भाइयों देवराज एवं नंजराज के हाथों में केन्द्रित थी। नंजराज ने 1749 ई. में हैदर अली को उसके अधिकारी सैनिक जीवन की शुरुआत का अवसर दिया। 1755 ई. में नजराज ने हैदर को डिंडिगुल के फौजदार पद पर नियुक्त कर दिया।
इस बीच मैसुर की राजधानी श्रीरंगपट्टनम में राजनीतिक अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई थी। जब यह अनिश्चितता अनियंत्रित हो गई और मराठों के आक्रमण का खतरा बढ़ गया, तब 1758 ई. में हैदर अली ने डिंडिगुल से श्रीरंगपट्टनम् आकर हस्तक्षेप किया और नंजराज-देवराज को राजनीति से संन्यास लेने को बाध्य कर दिया। 1761 ई. तक मैसूर राज्य की सारी शक्तियां हैदर अली के हाथों में आ गईं। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान हैदर अली और टीपू सुल्तान के नेतृत्व में मैसूर राज्य उल्लेखनीय शक्ति के रूप में उदित हुआ।
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