World War 1 in Hindi
World War 1 :- तात्कालिक कारण
28 जून, 1914 साराजेवो में ऑस्ट्रिया के राजसिंहासन के उत्तराधिकारी आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेंड तथा उसकी पत्नी की हत्या ने विश्व युद्ध के लिए तात्कालिक कारण का काम किया। साराजेवो, बोस्निया की राजधानी थी। इन हत्याओं की योजना ब्लैक हैंड या यूनियन ऑफ डेथ नामक एक गुप्त संस्था द्वारा संरचित थी। इन राष्ट्रवादियों का लक्ष्य सभी सर्बियाइयों को एक सर्बियाई राज्य के रूप में संगठित करना था।
ऑस्ट्रिया-हंगरी को इन हत्याओं में सर्बिया का षडयंत्र होने का पूरा विश्वास था, इसलिए 23 जुलाई को उसने सर्बिया पर अंतिम चेतावनी दी, जिसमें ग्यारह माँगें रखी गई थीं।
सर्बिया ने कुछ माँगों को छोड़कर, ज्यादातर माँगें स्वीकार कर ली। सभी माँगों की स्वीकृति का मतलब होता सर्बिया का पूर्ण रूप से अपनी प्रभुसत्ता से वंचित होना। सर्बिया के 25 जुलाई के उत्तर से ऑस्ट्रिया संतुष्ट नहीं हुआ।
ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के प्रतिक्रिया को अस्वीकार करते हुए उस पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना को तत्काल लामबंद हो जाने का आदेश दे दिया। 28 जुलाई, 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 29 जुलाई को ऑस्ट्रियाई सेना ने सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड पर बमबारी की। सर्बिया और ऑस्ट्रिया के मध्य युद्ध आरंभ होने के शीघ्र बाद दो और युद्ध प्रारम्भ हो गये और सैनिक दृष्टि से इन तीनों छोटे युद्धों के आपस में जुड़ जाने से प्रथम विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया।
युद्ध बंद करने के लिए ऑस्ट्रिया पर दबाव डालने हेतु रूस ने उसके विरुद्ध लामबंदी का आदेश जारी कर दिया। रूस ने जर्मनी के विरुद्ध भी लड़ाई की तैयारी प्रारम्भ कर दी। जर्मनी को विश्वास था कि यदि रूस के साथ उसकी लड़ाई हुई तो फ्रांस उसके विरुद्ध रूस का साथ देगा। जर्मनी ने एक त्वरित युद्ध में पहले फ्रांस को हराने की योजनाएँ बनाईं और अपनी अधिकांश सेना को इसी उद्देश्य से लामबंद किया।
इसके बाद उसका इरादा रूस की ओर मुड़ने का था और वह जानता था कि रूस पर जल्दी जीत नहीं हासिल हो पाएगी। ब्रिटेन की स्थिति अब भी अस्पष्ट थी, क्योंकि ब्रिटिश सरकार के युद्ध में शामिल होने के बारे में मतभेद था। फ्रांस ने उससे मदद माँगी तो ब्रिटेन ने वादा किया कि जर्मनी के विरुद्ध उसके उत्तरी तट की वह रक्षा करेगा। जर्मनी ने जब तटस्थ बेल्जियम पर आक्रमण कर दिया तो ब्रिटेन की दुविधा समाप्त हो गई और जर्मनी तथा ब्रिटेन के मध्य युद्ध प्रारम्भ हो गया। इटली जो त्रिपक्षीय संधि संगठन का सदस्य था, तटस्थ रहा।
युद्ध का विस्तार
1 अगस्त, 1914 को जर्मनी ने रूस और 3 अगस्त को फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 4 अगस्त को सुबह जर्मन सेना ने बेल्जियम में प्रवेश किया और उसी दिन आधी रात को इंग्लैण्ड ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। अगस्त में ही जापान ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। उसने ब्रिटेन के साथ एक संधि की थी लेकिन उसका मुख्य लक्ष्य चीन और प्रशांत क्षेत्र में जर्मन प्रभाव वाले प्रदेशों को हथियाना था।
पुर्तगाल भी, जिसे ब्रिटेन अक्सर अपना सबसे पुराना मित्र कहता था, युद्ध में शामिल हो गया। मई, 1915 में इटली ने ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। ब्रिटेन और फ्रांस ने उसे ऑस्ट्रिया और तुर्की के प्रदेश देने का वादा किया था। रोमानिया और यूनान (ग्रीस) ब्रिटेन, फ्रांस और रूस के साथ मिल गए।
अपने साथियों के साथ ये देश मित्र शक्तियों के रूप में प्रसिद्ध हुए। बुल्गारिया अक्टूबर में जर्मनी और ऑस्ट्रिया के साथ शामिल हो गया। उसे सर्बिया तथा यूनान के प्रदेश देने का लोभ दिया गया था और तुर्की के कुछ क्षेत्र दे दिए गए थे। नवंबर में तुर्की ने रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और वह जर्मनी तथा ऑस्ट्रिया की ओर से युद्ध में शामिल हो गया। जर्मनी और ऑस्ट्रिया तथा उसके मित्र देश केन्द्रीय शक्तियों के रूप में प्रसिद्ध हुए।
बल्गारिया अक्टूबर में जर्मनी और ऑस्ट्रिया के साथ शामिल हो गया। उसे सर्बिया तथा यूनान के प्रदेश देने का लोभ दिया गया था और तुर्की के कुछ क्षेत्र दे दिए गए थे। नवंबर में तुर्की ने रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और वह जर्मनी तथा ऑस्ट्रिया की ओर से युद्ध में शामिल हो गया। जर्मनी और ऑस्ट्रिया तथा उसके मित्र देश केन्द्रीय शक्तियों के रूप में प्रसिद्ध हुए।
अप्रैल, 1917 में संयुक्त राज्य अमेरिका मित्र शक्तियों की ओर से युद्ध में शामिल हो गया। युद्धरत देशों की संख्या कुल मिलाकर 27 तक पहुँच गई। इस लड़ाई के लिए लगभग 6.5 करोड़ सैनिकों को लामबंद किया गया था। इनमें से 4.2 करोड़ से अधिक मित्र-शक्तियों द्वारा और 2.2 करोड़ से अधिक केन्द्रीय शक्तियों द्वारा लामबंद किए गए थे।
युद्ध की तीव्रता तथा नरसंहार की वीभत्सता की दृष्टि से यूरोप में लड़े गये युद्ध दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में लड़े गये युद्ध से बहुत अधिक भीषण थे। यूरोप के पश्चिमी मोर्चों पर युद्ध का प्रारम्भ उस समय हुआ, जब जर्मन सेना ने बेल्जियम को तेजी से लाँघते हुए दक्षिण फ्रांस में प्रवेश किया। सितंबर के आरंभ में जर्मन सेना पेरिस के बहुत पास तक पहुँच चुकी थी।
फ्रांसीसी सेना अल्सास लॉरेन में प्रवेश करने के इरादे से में फ्रांस-जर्मनी सीमा पर पहुँच गई थी। जर्मन सेना को उम्मीद थी कि वह फ्रांसीसी सेना को घेर लेगी और इसी क्रम में बढ़ते हुए विजय प्राप्त कर लेगी। अल्सास लॉरेन से वापस लौटती फ्रांसीसी सेना ब्रिटिश सेना के साथ होकर मार्न का युद्ध (यह युद्ध मार्न नदी के निकट लड़ी गई थी) में जर्मन सेना से भिड़ गई। दोनों पक्ष चार वर्षों तक वहाँ डटे रहे लेकिन कोई किसी को अपने मोर्चे से पीछे नहीं हटा पाया।
स्विट्जरलैंड से लगी फ्रांस की दक्षिणी सीमा से लेकर उसके उत्तरी तट तक सैकड़ों किलोमीटर की दूरी में दोनों ओर से खोदे गए खंदकों और कंटीले तार के पीछे दोनों सेनाएँ मोर्चे लगाकर बैठ गईं। दोनों ओर घायलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी। 1915 ई. में सफलता की आशा से जर्मनी ने जहरीली गैस का प्रयोग आरंभ किया और 1916 ई. में ब्रिटेन ने हाल ही में आविष्कृत टैंक कहे जाने वाले युद्ध-वाहनों का प्रयोग प्रारम्भ किया। लेकिन दोनों में से किसी की तकनीक का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
दोनों पक्षों के जितने सैनिक मर जाते थे उतने पुनः नई भर्तियों से जुटा लिए जाते थे। 1915 ई. में रूसी सेना को पराजय का सामना करना पड़ा और , केन्द्रीय शक्तियों की सेना रूसी साम्राज्य के कई प्रदेशों में प्रवेश कर गईं। 1916 ई. में रूस ने दूसरा आक्रमण प्रारम्भ कर दिया जिसे विफल कर दिया गया। 1917 ई. की अक्टूबर क्रांति के बाद रूस युद्ध से अलग हो गया। 2 मार्च, 1918 को उसने जर्मनी के साथ ब्रेस्ट-लिटोवस्क की संधि पर हस्ताक्षर किए।
रूस द्वारा लामबंद किए गए कुल 1.2 करोड़ सैनिकों में से 17 लाख मारे जा चुके थे, 50 लाख घायल हो गए थे और लगभग 25 लाख या तो गुम हो गए थे या बंदी बना लिए गए थे।

यूरोप से बाहर युद्ध का फैलाव
यूरोप से बाहर कुछ बड़ी लड़ाइयाँ उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में लड़ी गईं। जर्मनी और तुर्की ने साथ होकर मित्र-शक्तियों के उत्तरी अफ्रीका तथा पश्चिमी एशिया स्थित औपनिवेशिक प्रदेशों तथा प्रभाव क्षेत्रों को संकट में डाल दिया। तुर्की शासन से अरब देशों की आजादी का समर्थन करने का दिखावा करते हुए ब्रिटेन और फ्रांस ने 1916 ई. में साइक्स-पाईकॉट नामक गुप्त समझौते पर हस्ताक्षर किए।
1917 ई. में ब्रिटिश सरकार ने फिलिस्तीन में यहूदी लोगों के लिए स्वराष्ट्र की स्थापना के लिए स्वयं को प्रतिबद्ध कर लिया। दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका में जर्मन प्रदेशों पर दक्षिण अफ्रीकी सेना ने अधिकार कर लिया। टोगोलैंड पर ब्रिटिश तथा फ्रांसीसी फौजों ने तथा कैमरून पर ब्रिटिश, फ्रांसीसी तथा बेल्जियम सेनाओं ने आधिपत्य स्थापित कर लिया।
इस लड़ाई को वार ऑफ एट्रिशन या थका देने वाले युद्ध के नाम से जाना जाता है, जिसमें मित्र देश और केंद्रीय शक्ति राष्ट्र एक-दूसरे को थकाकर मैदान से हटा देने का प्रयास कर रहे थे। इस थका देने वाले युद्ध के दौर में दो महाविनाशकारी युद्ध लड़े गए। फरवरी, 1916 में जर्मनी ने वरदून के फ्रांसीसी गढ़ पर भीषण हमला कर दिया। जवाब में फ्रांसीसियों ने लाखों सैनिकों को इस युद्ध में झोंक दिया। इसमें लगभग सात लाख सैनिक हताहत हुए, जो कि दोनों ओर लगभग बराबर-बराबर संख्या में थे। दूसरी थी सोम की लड़ाई जिसके सोम नदी के तट पर लड़े जाने के कारण इस लड़ाई का यह नाम पड़ा।
नाकेबंदी की नीति
ब्रिटेन ने जर्मनी की नौसैनिक घेराबंदी कर दी। खाद्य सामग्री तथा अन्य वस्तुओं को ब्रिटेन पहुँचने से रोकने के लिए जर्मनी ने ब्रिटेन की ओर जाने वाले जहाजों को डुबाने के लिए पनडुब्बियों (यू-बोट, जिसे जर्मन में उंटर-सी-बोट कहते थे) का इस्तेमाल करना प्रारम्भ किया। लड़ाई में विमानों का प्रयोग भी प्रारम्भ हो गया। शहरों पर हवाई जहाजों से बमबारी की गई और जर्मन तथा मित्र-शक्तियों के विमानों के बीच आकाश में प्रत्यक्ष व परोक्ष लड़ाइयाँ हुईं।
युद्ध का अंत
अक्टूबर क्रांति के बाद रूस युद्ध से हट गया था और उसे जर्मनी के साथ एक अपमानजनक संधि करने पर विवश कर दिया गया था। युद्ध आरंभ होने के पश्चात् संयुक्त मित्र राज्य-शक्तियों को गोला-बारूद, खाद्य सामाग्री आदि दे रहा था, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था की अत्यधिक प्रगति हुई थी।
इसी बीच सभी प्रमुख युद्धरत देशों की नागरिक आबादी तथा सैनिकों में असंतोष की आग सुलग रही थी। रूसी सम्राट का पहले से ही राज्याभिषेक हो चुका था। केंद्रीय शक्तियों के नाम से जाने जाने वाले देशों में अंसतोष बहुत व्यापक था। जर्मनी तथा ऑस्ट्रिया-हंगरी में अधीनस्थ राष्ट्रों के सैनिकों ने बड़े पैमाने पर सेना छोड़कर भागना प्रारम्भ कर दिया।
जुलाई, 1918 के मध्य से युद्ध का रुख जर्मनी के विरुद्ध जाने लगा था। जर्मनी ने पश्चिमी मोर्चे पर कई आक्रमण करके मित्र शक्तियों को भारी नुकसान पहुँचाया था। जुलाई का महीना आते-आते इसके आक्रमणों को रोक दिया गया और मित्र शक्तियों ने प्रत्याक्रमणों का दौर प्रारम्भ कर दिया। इस बीच मित्र शक्तियों की सेनाएँ रूस में भी हस्तक्षेप करने लगी थीं। पूर्व में हजारों जापानी सैनिक साइबेरिया में घुस गये। हस्तक्षेप का यह दौर तो युद्ध की समाप्ति के बाद तक चला, लेकिन इस बीच केन्द्रीय शक्तियों की हार की शुरूआत हो गयी थी।
29 सितंबर, 1918 को बुल्गारिया ने आत्मसमर्पण कर दिया। अक्टूबर के अंत तक उस्मानिया साम्राज्य के अस्तित्व का भी अंत हो गया। ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य की अधिकाँश जातियाँ, जैसे चेक, पोल, युगोस्लाव तथा हंगेरियाई अपनी-अपनी आजादी की घोषणा कर चुके थे। 3 नवंबर को जर्मनी में क्रांति प्रारम्भ हो गयी। 9 नवंबर को जर्मनी के सम्राट ने सिंहासन त्याग दिया और भाग कर हॉलैंड चला गया। 10 नवंबर को जर्मनी की नई सरकार ने युद्ध विराम संधि पर हस्ताक्षर कर दिए और 11 नवंबर, 1918 के दिन 11 बजे प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो गया। युद्ध में भीषण नर-संहार हुआ, जो 63 करोड़ सैनिक लामबंद किए गए थे उनमें से लगभग 90 लाख मारे गये थे और 2.2 करोड़ घायल हुए थे।
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