World War 2 in Hindi
World War 2 History in Hindi
World War II युद्ध का आरंभ
1 सितम्बर, 1939 को हिटलर की सेना ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। 3 सितंबर को ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। युद्ध की घोषणा के बावजूद ब्रिटेन और फ्रांस में से कोई भी पोलैंड की मदद के लिए नहीं पहुंचा।
3 सप्ताह में पोलैंड परास्त हो गया। ब्रिटेन और फ्रांस ने पश्चिम में भी कोई सैनिक कार्रवाई आरंभ नहीं की थी। द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो चुका था, लेकिन अभी वह पूर्व में यूरोप के एक छोटे-से हिस्से तक सीमित था। युद्ध की घोषणा के बाद लगभग एक महीने तक छोटी-मोटी नौसैनिक झड़पों को छोड़कर ब्रिटेन और फ्रांस की जर्मनी के साथ कोई वास्तविक युद्ध नहीं हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के इस दौर को इतिहास में वाक्-युद्ध कहा गया है।
पूर्वी पोलैंड और बाल्टिक राज्यों पर सोवियत कब्जा
पोलैंड पर जर्मनी के आक्रमण के कुछ दिन बाद सोवियत संघ ने पोलैंड के उन पूर्वी क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया, जो पहले रूसी साम्राज्य के यूक्रेन तथा बेलारूस प्रदेशों के अन्तर्गत थे। नवंबर 1939 में सोवियत संघ और फिनलैंड के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया। यह युद्ध मार्च 1940 में सोवियत-फिनिश शांति संधि के साथ समाप्त हुई।
इस संधि से सोवियत संघ को एक नौसैनिक अड्डा और फिनलैंड के उत्तर में कुछ प्रदेश मिल गए। उसी समय सोवियत संघ ने लाटविया, लिथुआनिया और एस्टोनिया के बाल्टिक राज्यों पर अधिकार कर लिया। ये रूसी साम्राज्य का अंग रह चुके थे और प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् आजाद हुए थे। अगस्त 1940 में इन देशों में सोवियत गणतंत्र स्थापित कर दिये गए और वे सोवियत संघ का हिस्सा बन गए।

डेनमार्क और नार्वे की विजय
‘ 9 अप्रैल, 1940 ई. को हिटलर ने डेनमार्क और नार्वे पर आक्रमण कर दिया। डेनमार्क ने बिना किसी प्रतिक्रिया के आत्मसमर्पण कर दिया और जून तक नार्वे के फासीवादियों के सक्रिय सहयोग से जर्मनी ने उसे भी पराजित कर दिया। डेनमार्क और नार्वे की विजय से हिटलर को उत्तरी यूरोप में महत्वपूर्ण वायुसैनिक तथा नौसैनिक अड्डे प्राप्त हो गए।
बेल्जियम, नीदरलैंड्स और फ्रांस का आत्मसमर्पण
10 मई, 1940 को जर्मनी ने नीदरलैंड्स (हॉलैंड), बेल्जियम, लक्जमबर्ग और फ्रांस पर आक्रमण किया। नीदरलैंड्स ने पाँच दिनों में और लक्जमबर्ग ने कुछ घंटों में आत्मसमर्पण कर दिया। बेल्जियम के राजा ने आक्रमण के 17 दिन बाद 28 मई, 1940 को अपनी सेना को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। 26 मई, 1940 को लगभग साढ़े तीन लाख ब्रिटिश, फ्रांसीसी और बेल्जियम सैनिकों (अर्थात् जिन बेल्जियम सैनिकों ने आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया था) का, जो पीछे हटकर डकार्क चले गए थे, मैदान खाली करने का दौर आरंभ हुआ। ब्रिटेन और फ्रांस में राजनीतिक परिवर्तन हो चुके थे।
10 मई, 1940 को चैंबरलेन ने त्यागपत्र दे दिया था और उसके स्थान पर विंस्टन चर्चिल को एक संविदा के आधार पर प्रधानमंत्री बना दिया गया था। लेबर पार्टी के नेता क्लीमेंट एटली को उपप्रधानमंत्री बनाया गया। मार्च 1940 में फ्रांसीसी प्रधानमंत्री दलादियार को अपदस्थ करके उसके स्थान पर पॉल रेनो को प्रधानमंत्री बना दिया गया था। इस समय के फ्रांसीसी मंत्रिमंडल के अधिकांश सदस्य पराजयवादी अर्थात् ऐसे लोग थे, जो हिटलर के सामने आत्मसमर्पण करने के पक्ष में थे।
9 जून को फ्रांसीसी सरकार ने पेरिस का त्याग कर दिया और 14 जन को पेरिस पर जर्मन सेना का अधिकार हो गया। इस समय फ्रांसीसी सरकार का प्रधान मार्शल हेनरी फिलिप पेंटा था। 22 जून को पेटाँ की सरकार ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसके अनुसार अल्सास-लॉरेन को जर्मनी ने अपने राज्य में मिला लिया।

उत्तरी फ्रांस पर जर्मन सेना ने अधिकार कर लिया और पेटाँ सरकार को लगभग आधे फ्रांस पर नियंत्रण रखने दिया गया। जब जर्मनी ने फ्रांस पर आक्रमण किया था, उस समय चाल डिगॉल फ्रांसीसी सेना में कर्नल था और फ्रांसीसी सरकार के आत्मसमर्पण के बाद वह बचकर ब्रिटेन चला गया। डिगॉल के नेतृत्व में फ्रांस का स्वतंत्रता आंदोलन आरंभ हुआ और नाजी जर्मनी से लड़ने के लिए ब्रिटेन में एक फ्रांसीसी सेना तैयार की गई। फ्रांस के जिस हिस्से पर पेटाँ सरकार का शासन था और जो नाजियों के साथ सहयोग कर रहा था वह विशी फ्रांस के नाम से जाना जाता है।
ब्रिटेन की लड़ाई
लगभग सम्पूर्ण पश्चिमी यूरोप को जीत लेने के बाद जर्मनी की योजना ब्रिटेन पर आक्रमण करने की थी। इसे सी-लायन का सांकेतिक नाम दिया गया। ब्रिटेन पर आक्रमण करना तभी संभव था, जब जर्मनी इंग्लिश चैनल पर नियंत्रण स्थापित कर लेता, जिसे पार करके जर्मन सेना ब्रिटेन में पहुँच सकती थी। जर्मन बम वर्षक और युद्धक विमानों ने ब्रिटिश बंदरगाहों, हवाई अड्डों तथा विमान कारखानों पर बमबारी प्रारम्भ कर दी।
इन दोनों देशों के विमानों के मध्य इंग्लिश चैनल तथा ब्रिटेन के शहरों और बंदरगाहों के ऊपर भीषण युद्ध हुए। जर्मन वायुसेना को ब्रिटेन की वायु सेना से अधिक नुकसान हुआ। ब्रिटेन के प्रबल प्रतिरोध के कारण जर्मनी ने वहाँ की जनता के नैतिक बल को तोड़ने की आशा से ब्रिटेन के बड़े नगरों, खासकर लंदन पर रात में हवाई हमले करना प्रारम्भ कर दिया। जवाब में ब्रिटेन ने भी जर्मनी पर हवाई आक्रमण किए।
ब्रिटेन और जर्मनी के बीच की हवाई युद्ध को इतिहास में ब्रिटेन की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। अपने ओजस्वी भाषणों से ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन की जनत के नैतिक बल को बुलंद रखा। ब्रिटेनवासियों ने अपने हवाई अड्डों की रक्षा करने में कामयाबी हासिल की और उन्हें कभी कोई गंभीर क्षति नहीं पहुँचने दी।
ब्रिटिश प्रतिरोध के फलस्वरूप ऑपेरशन सी-लायन अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया। नवंबर 1940 से लंदन पर जर्मन हवाई आक्रमण कमोबेश बंद हो चुके थे। युद्ध यूरोप के कुछ अन्य हिस्सों और अफ्रीका में फैल चुका था। 27 सितंबर, 1940 को जर्मनी, इटली और जापान ने एक त्रिपक्षीय संधि की। इस संधि के अनुसार प्रत्येक देश ने शेष दो देशों को किसी तीसरी शक्ति द्वारा उन पर आक्रमण होने पर सहायता देने का वचन दिया। जर्मनी और इटली ने जापान के वृहत्तर पूर्व एशिया सह-समृद्धि क्षेत्र का निर्माण करने का दावा स्वीकार कर लिया।
अक्टूबर 1940 में इटली ने यूनान पर आक्रमण किया। नवंबर 1940 और मार्च 1941 के मध्य जर्मनी ने हंगरी, रोमानिया, स्लोवाकिया और बुल्गारिया को त्रिपक्षीय गुट में सम्मिलित कर लिया। ये देश जर्मनी, इटली और जापान के मित्र देश बन गए। इस समय तक हिटलर ने सोवियत संघ पर आक्रमण करने का . निर्णय कर लिया था।
अप्रैल में जर्मन सैनिक यूगोस्लाविया और यूनान भेजे गए। यूनान ने अपने ऊपर इटली के हमले को नाकाम कर दिया। अब जर्मन सेना की मदद से यूगोस्लाविया और यूनान दोनों को पराजित कर दिया गया। जून 1941 तक जर्मनी और इटली, रूस तथा ब्रिटेन को छोड़कर सम्पूर्ण यूरोप को जीत चुके थे। दिसंबर 1940 तक अंग्रेज न केवल अफ्रीका के अपने सभी उपनिवेशों को फिर से जीत लेने में सफल हो गए थे बल्कि लीबिया को छोड़कर बाकी सभी अफ्रीकी देशों से इटालवी सेना को खदेड़ देने में भी सफल हो गए थे। फरवरी 1941 में नाजियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध अफ्रीका में दूसरा अभियान प्रारम्भ कर दिया।
सोवियत संघ पर जर्मन आक्रमण
हिटलर सदैव से मानता आ रहा था कि उसे वास्तविक युद्ध सोवियत संघ के विरुद्ध लड़ना होगा। उसका विश्वास था कि सोवियत संघ के विशाल संसाधनों को जीत लेने से जर्मनी अभेद्य हो जाएगा और उसे सभी महादेशों के साथ युद्ध करने की शक्ति प्राप्त हो जाएगी। सोवियत संघ को जीतने का लक्ष्य जर्मनी के दूसरे सैनिक अभियानों के लक्ष्य से बहुत भिन्न भी था। हिटलर का उद्देश्य इस युद्ध को विनाश की संपूर्ण युद्ध का रूप देने का था।
हिटलर का इरादा यूराल से पश्चिम के प्रदेशों में विशुद्ध आर्य रक्त के यानी जर्मन नस्ल के दस करोड़ लोगों को बसाने का था। सोवियत संघ पर आक्रमण की योजना 1940 ई. के आरंभ से ही बनाई जाने लगी थी। उसे ऑपरेशन बारबरोसा की सांकेतिक संज्ञा दी गई। लाल सेना के नाम से विख्यात सोवियत सेना के बारे में हिटलर की राय बहुत उपहास पूर्ण थी। उसे वह एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं समझता था।
योजना के अनुसार सोवियत संघ को 9 या अधिक से अधिक 17 सप्ताह के अंदर जीत लेना था। युद्ध की किसी औपचारिक घोषणा के बिना 22 जून 1941 को जर्मन टैंक लेनिनग्राद, मास्को और कीव की ओर जाने वाले 3000 किमी. से अधिक लंबे मोर्चे से होकर तेजी से आगे बढ़े। सोवियत सेना लगातार पीछे हटती रही और जर्मन सेना ने कीव, स्मोलैंस्क तथा ओडेसा पर अधिकार कर लिया। जर्मनी ने शीत ऋतु प्रारम्भ होने से पहले ही सोवियत संघ के विरुद्ध अपने युद्ध को अंतिम परिणति तक पहुँचा देने की आशा की थी। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। शीघ्र ही भयावह रूसी शीत ऋतु आरंभ हो गई।
नवंबर के मध्य तक मास्को पर आक्रमण को रोकना पड़ा। नवंबर के अंत तक तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे आ गया था, जिससे जर्मनी के काफी सारे भारी साज-सामान बेकार हो गए। जर्मन सिपाहियों को इतने कपड़े नहीं दिए गए थे, कि वे रूस की सर्दी को झेल पाते। दिसंबर में सोवियत प्रत्याक्रमण आरंभ हुआ और जनवरी तक जर्मन सेना को मास्को से खदेड़ दिया गया। ऑपरेशन बारबरोसा विफल हो चुका था, लेकिन जर्मनी की पूर्ण पराजय में अभी देर थी।
संयुक्त राज्य अमेरिका का युद्ध में प्रवेश
जब द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ हुआ तब उस समय संयुक्त राज्य ने अपने को तटस्थ घोषित कर दिया था। सुडेटनलैंड को लेकर चलने वाली वार्ता में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने चेंबरलेन की तुष्टीकरण की नीति का समर्थन किया था। इस युद्ध में ज्यादातर अमेरिकी ब्रिटेन से सहानुभूति रखते थे। ब्रिटेन को संयुक्त राज्य अमेरिका से शस्त्रों की नकद खरीदारी करने दी गई। धीरे-धीरे ब्रिटेन के प्रति संयुक्त राज्य अमेरिका का समर्थन बढ़ता गया।
मार्च 1941 में संयुक्त राज्य की कांग्रेस (संसद) ने एक कानून पास किया जिसमें राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया कि वह ऐसे किसी भी देश को उधार या पट्टे पर शस्त्र दे सकता है जिसकी रक्षा को वह संयुक्त राज्य की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण समझे। इसे उधार पट्टा व्यवस्था (लैंड-लीज सिस्टम) की संज्ञा दी गई।
अब ब्रिटेन को संयुक्त राज्य से बड़े पैमाने पर शस्त्र आदि प्राप्त होने लगे। नवंबर 1941 में अमरीकी उधार पट्टा व्यवस्था सोवियत संघ पर भी लागू कर दी गई। अगस्त 1941 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल और अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट (जो 1940 ई. में तीसरी बार इस पद पर चुना गया था) ने अपनी अगस्त 1941 को मुलाकात के बाद एक घोषणा जारी की।
यह घोषणा अटलांटिक चार्टर (अटलांटिक घोषणा-पत्र) के नाम से प्रसिद्ध हुई है। इस घोषणा पत्र में कुछ सामान्य सिद्धांत प्रतिपादित किए गए थे, जिनके आधार पर विश्व के लिए बेहतर भविष्य की रचना की जा सकती थी। . दोनों देशों ने कहा कि हम कोई प्रादेशिक या अन्य प्रकार का लाभ नहीं चाहते और न देशों की स्थिति में ऐसे परिवर्तन चाहते हैं, जो संबंधित जन-समाज की स्वतंत्र इच्छा के अनुरूप न हों। घोषणा-पत्र में नाजी अत्याचार को सदा के लिए समाप्त कर देने की बात भी कही गई थी अतः सोवियत संघ भी इस घोषणा में सम्मिलित हो गया।
पर्ल हार्बर पर आक्रमण
जुलाई 1941 ई. में जापानियों ने हिंद-चीन (इंडोचाइना) में वियतनाम पर अधिकार कर लिया था। अक्टूबर में जापान में और भी आक्रामक रूखवाली सरकार पदारूढ़ हुई। उसका प्रधान जनरल हिदेकी टोजो था। जापानी बम वर्षक विमानों ने हवाई द्वीप पर्ल हार्बर में स्थित अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर आक्रमण कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका यह मान रहा था कि अगर जापान ने आक्रमण किया भी तो वह उस क्षेत्र के ब्रिटिश और डच उपनिवेशों पर ही हमला करेगा। इस जापानी कार्रवाई के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका बिल्कुल तैयार नहीं था। बमबारी में संयुक्त राज्य अमेरिका के 188 विमान और बहुत से पोत, तथा अन्य नौसैनिक जहाज ध्वस्त हो गए एवं 2000 से अधिक सैनिक मारे गए।
8 दिसंबर को संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 11 दिसंबर को जर्मनी और इटली ने संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका ने इन दोनों देशों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
विश्व युद्ध
सोवियत संघ पर जर्मन आक्रमण, पर्ल हार्बर पर जापानी आक्रमण और संयुक्त राज्य अमेरिका का युद्ध में उतर आना, 1941 ई. की इन घटनाओं ने इस युद्ध को वास्तव में विश्व युद्ध में परिणत कर दिया।1942 ई. के अंत तक जापान ने प्रशांत क्षेत्र में कई द्वीपों फिलिपींस, इंडोनेशिया, बर्मा (म्यांमार), मलाया, सिंगापुर और थाईलैंड पर अधिकार कर लिया।
इस समय फासीवाद विरोधी गठबंधन कायम हुआ जिसमें ब्रिटेन सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका सम्मिलित हुए। विंस्टन चर्चिल ने इसे महान गठबंधन की संज्ञा दी। ब्रिटेन और संयुक्त राज्य साथ होकर संयुक्त कमान के अधीन लड़े। अपरिमित परिमाण में युद्ध सामग्री का उत्पादन किया गया, जिसमें 3 लाख विमान और 25 हजार टैंक भी शामिल थे। संयुक्त राज्य अमेरिका को विजय का शस्त्रागार कहा गया है। सोवियत संघ ने जनरल डिगॉल को मान्यता दी, जिसने बाद में समस्त स्वतंत्र फ्रांसीसियों की एक कामचलाऊ सरकार गठित कर ली थी।
स्टालिनग्राद की लड़ाई
1942 ई. के पूरे दौर में यूरोप में यह युद्ध लगभग पूर्णरूप से सोवियत सेना तथा जर्मनी और उसके मित्र देश रोमानिया और बुल्गारिया की सेनाओं के मध्य लड़ा गया। मार्च 1942 में हिटलर ने दावा किया था कि लाल सेना को ग्रीष्म ऋतु समाप्त होने से पहले कुचल दिया जाएगा। जुलाई में जर्मन सेना ने स्टालिनग्राद (अब वोल्गाग्राद) पर आक्रमण किया और मध्य सिंतबर तक सेना स्टालिनग्राद की सीमाओं पर पहुँच गई। उसके बाद वह संघर्ष आरम्भ हुआ जिसे द्वितीय विश्व युद्ध का सबसे बड़ा एकल शक्ति-परीक्षण कहा गया है।
नवंबर के मध्य तक जर्मन सेना स्टालिनग्राद के अंदर और आस-पास पहुँच चुकी थी। नवंबर के आखिरी दिनों में स्टालिनग्राद में और उसके आस-पास मौजूद जर्मन सेना को सोवियत सेना ने घेर लिया।
जर्मन सेना के कमांडर जनरल पालस ने 24 जनवरी 1943 ई. को खबर भेजी कि जर्मन सेना के जो सैनिक बचे हुए हैं उनमें से 20,000 शीतक्षत (फ्रॉस्टबाइट) से पीड़ित हैं, उनके पास लड़ने को हथियार नहीं है और वे भूखों मर रहे हैं। 31 जनवरी 1943 को पालस ने आत्मसमर्पण कर दिया। स्टालिनग्राद के युद्ध पाँच महीने चली जिस दौरान वह शहर मलबे का ढेर बन गया था।
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इस युद्ध में जर्मन पराजय को इतिहास में किसी भी जर्मन सेना की सबसे गहरी शिकस्त कहा गया है। • जर्मनी और उसके मित्र देशों की इस युद्ध में 3,00,000 सैनिकों की मृत्यु हुई। जुलाई 1941 में सोवियत सरकार ने ब्रिटेन से जर्मन अधिकृत फ्रांस पर आक्रमण करके एक दूसरा मोर्चा खोलने का आग्रह किया, लेकिन ब्रिटेन इस पर सहमत नहीं हुआ।
मई और जून 1942 में सोवियत संघ ने ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका से पुनः दूसरा मोर्चा खोलने का अनुरोध किया। ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका ने नया मोर्चा खोलने की बजाय अपनी सेना को उत्तरी अफ्रीका भेजने का फैसला किया। 1943 ई. के मध्य में जर्मनी और उसके मित्र देशों की सेनाओं ने सोवियत सेना के विरुद्ध एक अन्य शक्तिशाली मुहिम छेड़ी। उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा और उनके तकरीबन 5 लाख सैनिक मारे गए। इसे कुर्क की लड़ाई कहते हैं।
यूरोप में मित्र राष्ट्रों की विजय
1943 ई. में ब्रिटेन और संयुक्त राज्य ने पश्चिमी यूरोप में अपनी आक्रामक कार्रवाई 1944 ई. तक के लिए स्थगित रखने का निर्णय लिया था। कुर्क की लड़ाई में सोवियत संघ की विजय के बाद उन्होंने सिसिली पर आक्रमण किया। इटली में व्यापक असंतोष फैल गया था, बार-बार हड़तालें हो रही थीं। इटालवी सेना को हर मोर्चे पर पराजय झेलनी थी और उसने भारी संख्या में मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण किया था।
25 जुलाई 1943 के दिन मुसोलिनी को बर्खास्त कर दिया गया और एक नई सरकार सत्तारूढ़ हुई। 3 सितंबर को मित्र राष्ट्रों की सेनाएँ दक्षिणी इटली पर चढ़ आईं और इटली ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। 10 सितंबर को जर्मन सेना ने रोम सहित उत्तरी इटली पर अधिकार कर लिया।
उन्होंने मुसोलिनी को नजरबंदी से स्वतंत्र करवाया, जिसने जर्मन संरक्षण में उत्तरी इटली में अपनी सरकार स्थापित की। दक्षिणी इटली में एक नई सरकार बनाई गई जिसने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 1944 ई. में फासीवादी सेनाएँ सोवियत प्रदेशों से बाहर की कर दी गईं। सोवियत संघ ने फिनलैंड को जो जर्मनी का मित्र देश बन गया था, पराजित कर दिया।
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यूरोप के देशों जैसे पोलैंड, रोमानिया, बुल्गारिया, हंगरी और चेकोस्लोवाकिया के अधिकतर हिस्सों को स्वतंत्र करा लिया गया। जून 1944 में मित्र राष्ट्रों ने पश्चिमी यूरोप में दूसरा मोर्चा खोला। 6 जून को, जिसे डी. डे (कार्रवाई शुरू करने के लिए तैयार किया गया दिन) कहा जाता है, फ्रांस के उत्तरी हिस्से में नॉरमेंडी के समुद्र तट पर मित्र-राष्ट्रों की सेना की पहली टुकड़ी उतरी।
जुलाई के अंत में फ्रांस में उतारे गए मित्र राष्ट्रों के सैनिकों की संख्या 16 लाख तक पहुँच गई। उनकी कमान जनरल ड्वाइट डी. आइजनहॉवर के हाथों में थी, जो बाद में संयुक्त राज्य का राष्ट्रपति बना। जर्मनी ने आखिरी बड़ा प्रत्याक्रमण बेल्जियम के आर्डेनिस क्षेत्र में दिसंबर 1944 में किया। यहाँ की युद्ध को बल्ज की लड़ाई कहते हैं।
जर्मनी का आत्मसमर्पण
23 अप्रैल, 1945 को इटली के उन इलाकों में एक विद्रोह हुआ, जहाँ फासीवादियों का नियंत्रण था। 28 अप्रैल, 1945 को मुसोलिनी को, जिसे गिरफ्तार कर लिया गया था, मृत्युदंड दे दिया गया और इटली में मौजूद जर्मनी ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके साथ इटली में फासीवाद समाप्त हो गया। जनवरी 1945 में आरंभ होने वाले सोवियत हमलों ने पूर्व जर्मनी की प्रतिरोध शक्ति को पूर्णतः नष्ट कर दिया।
17 जनवरी, 1945 को वारसॉ को, 13 फरवरी को बुडापेस्ट को और 13 अप्रैल को विएना को मुक्त करा लिया गया। सोवियत सेना ने जर्मनी में प्रवेश किया और 25 अप्रैल तक बर्लिन पर घेरा डाला जा चुका था। 30 अप्रैल, 1945 को हिटलर ने आत्महत्या कर ली। उसी दिन सोवियत सेना ने राइक्सटाग भवन पर लाल झंडा फहरा दिया।
7 मई, 1945 को जर्मनी ने संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ के प्रतिनिधियों के सामने जनरल आइजनहॉवर के राइक्स स्थित मुख्यालय में बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। 8 मई, 1945 को जर्मनी ने बर्लिन स्थित सोवियत मुख्यालय में दूसरा आत्मसमर्पण किया।
11 मई, 1945 को चेकोस्लोवाकिया को आजाद करा लिया गया और इसी के साथ यूरोप में युद्ध समाप्त हो गया और लम्बे समय के युद्ध ने यूरोप की दशा एवं दिशा बदल दी।
जापान का आत्मसमर्पण
एशिया और प्रशांत क्षेत्र में जर्मनी के आत्मसमर्पण के बाद भी युद्ध चलता रहा। चीन के मंचूरिया, कोरिया तथा कुछ अन्य क्षेत्रों में जापान के पैर अब भी दृढ़तापूर्वक से जमे हुए थे। संयुक्त राज्य अमेरिका के एक विमान ने 6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा नगर पर और 9 अगस्त, 1945 को नागासाकी नगर पर परमाणु बम गिराया।
इन बमों से दोनों नगरों में 3,20,000 से अधिक लोग मारे गए। जापान ने 15 अगस्त, 1945 को पराजय स्वीकार कर लिया। 8 अगस्त को सोवियत संघ ने जापान के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी थी। अगस्त के अंत तक जापानी सेना मंचूरिया में सोवियत संघ की सेना के समक्ष, दक्षिण पूर्व एशिया में ब्रिटिश सेना के आगे और चीन में च्यांग काई-शेक तथा चीनी साम्यवादियों की सेनाओं के सामने आत्मसमर्पण कर चुकी थीं।
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